रविवार, सितंबर 01, 2013

कन्या भ्रूण हत्या को लीगल कर देना चाहिए भारत में



इस लेख का  टाइटल पढ़ के पहले सब की भोहें चढ़ जायेगीं ! कुछ  दिमाग में राय बना लेंगे सौ तरह की। जो ड्रामेबाज़ हैं वो सौ लांछन लगायेंगे मेरी सोच को । क्यूंकि हमारा  दोगला समाज अपनी असलियत को कभी स्वीकार नही कर  सकता !
 इक माँ  अपनी बच्ची को अपने अंदर सींचती हैं अपने खून से  … कोई पुरुष कभी उन नो महीनो के उत्साह, ख़ुशी, तकलीफ , दर्द , बेचैनी  भी अंदर  घटित।  .. कभी समझ नही सकता , महसुस नही कर सकता ! फिर उस बच्ची को पालो , हर बढ़ते साल के साथ उसमे अपनी खुशियाँ जोड़ो , उम्मीदें बांधों ,जिंदगी उसमे देखो  अपनी जिंदगी के बीस पच्चीस साल उसे सींचने में लगाओ। 

और फिर, उस इक पूरी जिंदगी को खतम कर देने वालो को , उस पूरी जिंदगी को स्वाह कर देने वाले को , उन बीस पच्चीस सालों की उम्मीद, ख़ुशी , जान उस जिंदगी मिटा देने वाले को ..........सिर्फ २ साल और कुछ महीनो को सज़ा। ....... सिर्फ २ साल !

जो देश ..  जो सरकार ... जिस देश के माँ बाप जिनके वो घटिया बेटे  होते हैं .... जिस देश के पुरुष -लड़के .. जो समाज लड़कियों को ऐसे ट्रीट  करे .. जिस देश में लड़कियों की आज़ादी उनकी सुरक्षा इक मात्र विषय हो ऐसे देश में कन्या भ्रूण हत्या लीगल कर  देनी चाहिए...कम से कम माँ बाप ये सोच के संतोष कर लें की उन्होंने अपने अंश को इक बुरे समाज। बुरे देश में पैदा न कर  ... सही मायने में अपना फर्ज़ निभाया !

कम से कम … उस हांड मॉस को इतना दर्द .शर्मिंदगी इतना दुःख .वो सब................. महसूस नही होगा .......जितना कि……. 



और अब जो अपने आप को समाज सुधारक का दर्जा देके बैठे हैं..... या जो ड्रामे बाज हैं , नोटंकी  हैं ,,,,वो कहेंगे ... ये समस्या का हल नही। ऐस सोचना गलत हे…ये हार मानना हे ..  फलाना धिम्काना .बला  बला बला ...... वो सिर्फ अपनी लेखन शैली की नुमाइश करने के लिए बड़ी बड़ी बातें कहेंगे ....या ये जताएंगे की वो कितने ऊँचे विचारों वाले हैं। .... पर उन्हें मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी ….बस इक बार उन लड़कियों  की जगह अपनी बेटी को रख के सोचिये….फ़िर कुछ ऐसा कहिये  

मैं खुद इस बात  """कन्या भ्रूण हत्या को लीगल कर देना चाहिए भारत में ""…क़े पक्ष में नही हूँ ..... बस मैं ..... मैं बहुत शर्मिंदा हूँ ………… मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। .. मैं बहुत आहात हूँ !

6 टिप्‍पणियां:

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

ताजा फैसले नें अकेले आप के मन को क्या हर संजीदा व्यक्ति के मन को चोट पहुंचाई है !

इमरान अंसारी ने कहा…

hmmmmm.....ye dil se nikle jazbaat....ye gussa ye aakrosh aam janta men vypat hai ......iska ilaaj bhi khud janta hi hai.....aisi nakara sarkar aur aise nakara kanoon ko badlana hi hoga.....par iska ye matlab bhi nahi ki ek masoom zindgi ko duniya me aane hi na diya jaye kyonki duniya bahut buri hai.....ise bura bhi humne hi banaya hai aur ise sahi bhi hum hi kar sakte hain.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अभी कुछ दिन पहले ही विष्णु प्रभाकर का उपन्यास -- अर्धनारीश्वर पढ़ रही थी .... उसमें भी कुछ यही समस्याएँ हैं ... एक जगह यही बात काही है की नारियां यदि लड़कियों को पैदा ही न करें तो तब देखें ये पुरुष क्या करेंगे ....

न्याय करते समय मात्र नाबालिग न देखा जाये .... अपराध की प्रवृति पर भी ध्यान देना चाहिए ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आहत तो हर कोई है न सिर्फ इस फैंसले से ... बल्कि जो भी हो रहा है समाज में वो सब देख सुन कर भी ...
मन के आक्रोश को सुलगने देना चाहिए जब तक वो सामूहिक लावा न बन जाए ...

Kartikey Raj ने कहा…

जी हाँ आपने बिलकुल सही कहा कन्या भ्रूण हत्या को लीगल कर ही देना चाहिए क्यूंकी जो चीजें छुप कर हो रही है वो खुलेआम हो सके जिससे भविष्य मे सबको पता चल जाए की दुनिया को चलाने के लिए लड़कियों की कितनी जरूरत है.........

abhi ने कहा…

शायद सब ही बहुत आहत हुए हैं और शर्मिंदा हैं!!
और बिलकुल सही है आपका ये गुस्सा और आक्रोश!!