मंगलवार, अक्टूबर 15, 2019

'' ये इंसान कुछ ऐसे ही होते हैं !''


धुल जम चुकी है चाँद पे क्या ?
या सिलबट्टे पे खुद को घिसता रहता है?
ना जाने ये चाँद क्यूँ रातों में अक्सर 
कतरा-कतरा मुझपे गिरता रहता है? 
मुंह बिचकाये रहता है, और
कहता है-'तुमने मुझको छोड़ दिया
उतर आई हो खुद ज़मीन पे, और
 मुझको ऊपर तन्हा छोड़ दिया
सालों का था याराना अपना
तुमने चंद रस्मों में तोड़ दिया।

कहा था मुझसे इन सितारों ने 
समझाया था रात के गलियारों ने 
    '' ये इंसान कुछ ऐसे ही होते हैं !''
इक बार तुमने भी तो
 आंसूं पिरोते कहा था ना मुझसे
 '' ये इंसान कुछ ऐसे ही होते हैं !''
वक़्त पड़े, तुम्हारे हो गए  
वक़्त पलटे तो पलट गए  
ठीक ही कहा था तुमने मुझसे 
 '' ये इंसान कुछ ऐसे ही होते हैं !''

इक वक़्त वो भी था जब तुम, 
अक्सर मेरी गोद में सोतीं थीं 
पहरों बातें करती थीं मुझसे 
आँख मिचौली खेला करतीं थीं
आंसू पिरो के देती थीं तुम मुझको
मैं माला पहन कितना इतराता था
तुम नज़्मे-नगमे लिखती रातों को
और मैं पौ फटे तक सुनता था।

और आज ये दिन है देखो तो 
तुम वहां ज़मीन पे सोती हो, 
ना बातें करती हो मुझसे 
ना आँख मिचौली खेला करती हो। 
रहती हो मुझसे अलग-अलग सी 
आँखे खोले जागे-जागे सोती हो। 
सम्भाल लेती हो आँसूं जाने कहाँ तुम?
जाने किसको मेरी माला दे देती हो?
सच कहा था इन सितारों ने, गलियारों ने
और सच ही कहा था तुमने भी मुझसे
'' ये इंसान कुछ ऐसे ही होते हैं !'

:-ज़ोया

pc @Googleimages 

19 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

मन की वीणा ने कहा…

मन को छू गई आपकी अभिव्यक्ति ज़ोया जी, चरम उत्कर्ष है एहसास का।
बहुत सुंदर शब्द संयोजन ।

हृदय स्पर्शी भाव ।
अभिनव सृजन।

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१८-१०-२०१९ ) को " व्याकुल पथिक की आत्मकथा " (चर्चा अंक- ३४९३ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१८-१०-२०१९ ) को " व्याकुल पथिक की आत्मकथा " (चर्चा अंक- ३४९३ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

यशोधा जी 
मेरी रचना को इस काबिल समझने के लिए बहुत आभार 

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

कुसुम जी 
:)
आपके स्नेहिल और ुयशाह बढ़ाने वाले  प्रसन्नत्ता देते हैं। .. बहुत बहुत धन्यवाद आपका युहीं साथ बनाये रखें 

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

सुशील ji

blog tak pahunchnae aur rchnaa k sraahane ke liye aabhaar

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Anita saini ji
मेरी रचना को इस काबिल समझने के लिए बहुत आभार

आपके स्नेहिल और utsaah बढ़ाने वाले shabd bahut prsannta देते हैं। .. बहुत बहुत धन्यवाद आपका युहीं साथ बनाये रखें

Rohitas Ghorela ने कहा…

समय के साथ इंसान बदल ही जाते हैं।
बच्चपन में सोए सोए चांद को तकते तकते अनगिनत ख्याल ओर सवाल मन में आते जाते।
मगर अब ऐसा है कि लास्ट बार चांद को कब गौर से देखा पता ही नहीं।
"कतरा कतरा गिरता रहता है मुझे पे" लेकिन फिर भी उस पर हमारी नजर नहीं जाती।
वो तो वैसा ही है जैसा हमेशा होता था...बस हम ही बदल गए।
बहुत उम्दा प्रस्तुति। वाह।

मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉👉  लोग बोले है बुरा लगता है

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

नमस्कार ,"जोया जी आज पहली बार मुझे #चर्चा मंच के अंक पर आपको पढ़ने का सुअवसर मिला... चांद संग आपकी वार्तालाप इतनी खूबसूरत तरीके से अपने बयाँ की है कि कविता के अंत तक बस पढ़ती ही गई....!!👌 इस बेहतरीन रचना के लिए आपको बहुत ढेर सारी बधाई

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

नमस्कार ,"जोया जी आज पहली बार मुझे #चर्चा मंच के अंक पर आपको पढ़ने का सुअवसर मिला... चांद संग आपकी वार्तालाप इतनी खूबसूरत तरीके से अपने बयाँ की है कि कविता के अंत तक बस पढ़ती ही गई....!!👌 इस बेहतरीन रचना के लिए आपको बहुत ढेर सारी बधाई

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आधुनिक काल की बेहतरीन सृजन को प्राप्त सरस सुगढ़ अभिव्यक्ति।
रचना में समाहित भाव, बिम्ब और प्रतीक इंसान के चरित्र को रेखांकित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
एक उत्कृष्ट शब्दचित्र के लिये बधाई एवं शुभकामनाएं।
लिखते रहिए।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत ही शानदार सृजन...
वाह!!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

सब कुछ दिल मे उतर गया ..मेरे पास कोई शब्द नहीं

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Rohitas ji

मेरे विचार में मेरी रचना सही मायने में तब अच्छी होती हैं जब पढ़ने वाला। .. उसे पढ़ कर कुछ सोचे  ... आपके कमेंट से साफ़ दीखता हे आप अपनी सोच  बैठें कुछ देर मेरी रचना के साथ 
बहुत ही स्नेहिल सभ्बडों के लिए आभार ...साथ बनाये रखे 

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Anita Laguri "Anu" ji

चर्चामंच का ये उपकार हे हम सब पर ,...हमे इक दूजे  देता है 
ब्लॉग तक पहुँचने और रचना को सराहने के लिए बहुत आभार बहुत ही स्नेहिल शब्दों के लिए हृदय से धन्यवाद साथ बनाये रखे 

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Ravindra Singh Yadav ji

आपने इतनी बड़ी बाते लिख दी। ...हृदय की गहराइयों से धन्यवाद। ..ऐसे बातों से कलम और लिखने वाले दोनों को ही ऊर्जा मिल जाती हैं....और लिखने की। ..अच्छा लिखने की। .आगे बढ़ाने की 
बहुत बहुत आभार उत्साह बढ़ाने के लिए युहीं साथ बनाये रखें 

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Sudha ji

blog tak aane aur rchna ko apna waqt dene ke liye abhut dhanywaad

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

संजयji

:)
aapke shabd jaane kab se mera utsaah bdhaa rhe hain

yuhin sath bnaaye rkhen\

aabhar