तेरी बात - बात सोचूँ मैं और यूँ ही दिल भरा करूँ,
तेरी चाहतों की याद को, मैं उदासियों से हरा करूँ।
कभी धूल है, कभी शूल है, कभी भारी कोई भूल है
के ये मन शरद का फूल है, इसे कैसे मैं हरा करूँ।
कई ऊँचे घर बना लिए, कई चूल्हे इनसे जला लिए
ये वन जो खाली हो गए इन्हे बीज दूँ और हरा करूँ।
कायी-कायी सारी सवारली, मन भीत भी निखारली
अब बैठे - बैठे ये सोचूँ मैं, रंग गेरुया या हरा करूँ।
मुझे 'श्याम' से ही आस है, मैं उससे ही तो 'ज़ोया' हूँ
उसे मोरपँख से प्रीत है, तो मैं खुद को ही हरा करूं।
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30 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 07 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
लाजवाब
तेरी बात - बात सोचूँ मैं और यूँ ही दिल भरा करूँ,
तेरी चाहतों की याद को, मैं उदासियों से हरा करूँ।
-बहुत ही सुंदर प्रेमपगी पंक्तियों ।
वाह! बहुत सुंदर!!!
तेरी बात - बात सोचूँ मैं और यूँ ही दिल भरा करूँ,
तेरी चाहतों की याद को, मैं उदासियों से हरा करूँ।
प्रीत में डूबे को बहलाते हुए क्या उकेरा है आपने प्रिय ज़ोया जी.
कायी-कायी सारी सवारली, मन भीत भी निखारली
अब बैठे - बैठे ये सोचूँ मैं, रंग गेरुया या हरा करूँ।..वाह! लाजवाब
सादर नमस्कार,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (09-06-2020) को
"राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।" (चर्चा अंक-3727) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत सुन्दर।
मुझे 'श्याम' से ही आस है, मैं उससे ही तो 'ज़ोया' हूँ
उसे मोरपँख से प्रीत है, तो मैं खुद को ही हरा करूं ...
बहुत ही लाजवाब शेर ...
यादें चाहे उदासियों की हों या फिर बातें हों बे-वजह की दिल के हमेशा करीब होती हैं ... उन्हें हरा करने जरूरत ही कहाँ ... मन को गेरुआ करना सबसे अच्छा है ... मन संत हो जाये तो काय स्वयं संवर जाती है ...
यशोदा जी
मेरी रचना को चर्चामंच पर साझा करने के लिए मन की गहराइयों से आभार
हमेशा उत्साह बढ़ाते रेने के लिए धन्यवाद
सुशील जी
रचना को सरहाने के लिए आभार
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी
ब्लॉग तक आने और रचना को अपना समय देने के लिए आभार
अनीता सैनी जी आपसे स्नेहिल शब्द पा के हमेशा बहुत प्रसन्नता होती है। उत्साह बढ़ाती रहे
रचना को अपना प्यार देने किये आभार
मीना जी
रचना को लिंक्स में शामिल करने के लिए आभार
आने हमेशा उत्साह बढ़ाया है और अपने स्नेहिल शब्दों के माध्यम से रचना को प्यार दिया है
बहुत आभार आपका
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी
सादर नमस्ते
आपसे सरहना पाना प्रसन्नता देता है
आभार
दिगंबर नासवा जी
आपने रचना का मर्म बड़ी गहराई से समझा। .. गेरुया से यही अर्थ था मेरा की अब मन को फिर से हरा या कहूं के बसाऊं या संत हो जाऊं
बहुत प्रसन्ता हुयी आपका कमेंट पढ़ कर
आपने हमेशा उत्साह बढ़ाया है
आभार
विश्वमोहन JI
ब्लॉग तक आने और रचना को अपना समय देने के लिए आभार
बेहतरीन बिम्बों और प्रतीकों का प्रयोग। 'हरा' की बहुत सुंदर व्यंजना प्रस्तुत की गई है। सुकोमल भावों से सजी मर्मस्पर्शी रचना।
सुन्दर प्रस्तुति.
यूं तो हर शेर अपने आप में लाजवाब है जोया जी ..अपने आप में गहरे भावों की गागर भरे ...बस यह शेर मन को पूरी सम्पूर्णता दे गया...
मुझे 'श्याम' से ही आस है, मैं उससे ही तो 'ज़ोया' हूँ
उसे मोरपँख से प्रीत है, तो मैं खुद को ही हरा करूं।
लाजवाब
बहुत सुन्दर सृजन 👏
Ravindra Singh ji
आपने समय दे कर .रचना को पढ़ा और भावों को समझा। .आभार
रचना की शैली को सराहने के लिए धन्यवाद आपका
ओंकार जी
आप ब्लॉग तक आये और अपना समय मेरी रचना को देकर इसे पढ़ा। ..बहुत आभार
Meena ji
मुझे मेरी हर रचना पे आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा होती हैं :)
आपसे उत्साहवर्धक शब्द पा क्र बहुत हौंसला बढ़ता हैं
ये शेर उतना सही बैठता नहीं है मगर। ...मज़बूर थी इसे लिखने के लिए
मेरी नज़र से रचना को देखने के लिए धन्यवाद आपका युहीं साथ बढ़ाते रहें
hindiguru जी
आप ब्लॉग तक आये , रचना को समय दिया और उत्साहवर्धक शब्दों को साझा किया
आपका आभार
~Sudha Singh vyaghr जी
सादर आभार आपका
बस इसका अलग रूप ही भा गया मन को....अभिनव सा प्रयोग और अर्थ में गहराई । ग़ज़ल के मानदंडों में मैं प्रथम कक्षा की छात्रा ही हू जोया जी :)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 30 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
दिव्या अग्रवाल जी,
आप ब्लॉग तक आये , रचना को समय दिया और उत्साहवर्धक शब्दों को साझा किया
आपका आभार
मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर साझा करने के लिए मन की गहराइयों से आभार
वाह!बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
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