'राष्ट्रवादिता'
इक भावना
'राष्ट् 'के सम्मान की !
राष्ट्र के आन-बान की
युगों से जीती आ रही
उस विधि विधान की !
नाम, जाती, धर्म क्या
रंग, बोली, भेष क्या
देश में या हो विदेश में
राष्ट्र उसी का होता है
जिसके हृदय में हो बसी
लौ राष्ट्र के सम्मान की !
कलम हो चाहे हाथ में,
चाहे हो बंदूक हाथ में,
बीजते तुम खेत हो या
तेज़ धार हो खींचते
सुकर्म जो तुम हो कर रहे
नींव सींचते हो राष्ट्र की !
भक्त या अंधभक्त कहो,
नाम कोई भी बोल लो,
वयंग्य चाहे खींच लो
भौहें जितनी भींच लो
चुभते तुमको शूल क्यों
बात की जो हित में राष्ट्र की !
पहलू सारे झाँक लो,
तथ्य सारे जान लो,
तर्क तोल - मोल लो,
मस्तिष्क अपने खोल लो,
तुलना करोगे किस से तुम?
मेरे भारत राष्ट्र की !
ज़ोया****
8 टिप्पणियां:
देशभक्ति के भावों से ओतप्रोत ..तीन रंगों से सजे पद बंध..,बेहतरीन व लाजवाब सृजन जोया जी । सभी पदबंध एक से बढ़ कर एक । अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
धन्यवाद मीना जी
आपके उत्साहवर्धक शब्द बहुत साहस बढ़ाते हैं। आपने रचना को स्नेह दिया और भाव को समझा , लिखना सार्थक हुआ
आपका बहुत बहुत आभार
रँग संयोजन और भावना संयोजन ... देश प्रेम का भाव छलक रहा है हर पंक्ति में ....
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है ....
इतने गहरे विचार बहुत खूब
मैंने हाल ही में ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन करना चाहती हूं कि आप मेरे पोस्ट को पढ़े और मुझे सही दिशा निर्दश दे
https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18
नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह
सुन्दर भावनाओं से लिखी गई कविता मुग्ध करती है विशेषतः तिरंगे के रूप में पंक्तियों का निखार, शायद "मस्तिष्क " आपको लिखना था, अगर ठीक कर लें तो और सुन्दर हो जाए - - नमन सह।
सुन्दर भावनाओं से लिखी गई कविता मुग्ध करती है विशेषतः तिरंगे के रूप में पंक्तियों का निखार, शायद "मस्तिष्क " आपको लिखना था अगर ठीक कर लें तो और सुन्दर हो जाए - - नमन सह।
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