खड़ी मायूस हूँ कबसे
खबर ये भी नहीं मुझको
जमीं ये जल गयी कैसे
खबर ये भी नहीं तुमको !
मेरे घर का जो हो तिनका
सहेजे उसको फिरती हूँ
तो फिर बस्ती जली कैसे
खबर अब भी नहीं तुमको !
सड़क ऐसे थी इक पहले
शहर पहले भी ऐसा था
गली देहकी थी हर ऐसे
खबर ये भी नहीं तुमको ?
वो शायर है जो कहता है
है शामिल खून हम सब का
लो अब मिट्टी हुई काली
खबर ये भी क्या है तुमको ?
खड़ी मायूस हूँ कबसे
खबर ये भी नहीं मुझको
15 टिप्पणियां:
bahut bahut dhanywaad Anita ji
blog tak pahunchnane, rchnaa ko is kaabil smjhne ke liye
aabhaar
Hmmm... Bahut khoob...
मेरे घर का जो हो तिनका
सहेजे उसको फिरती हूँ
तो फिर बस्ती जली कैसे
खबर अब भी नहीं तुमको !
बहुत खूब जोया जी ,सादर नमन
वाह!!!
बहुत सुन्दर सृजन...।
वो शायर है जो कहता है
है शामिल खून हम सब का
लो अब मिट्टी हुई काली
खबर ये भी क्या है तुमको ?
लाजवाब जोया जी गहरे एहसास समेटे सुंदर भाव।
CBU ji
बहुत बहुत धनयवाद
हमेशा खुश रहें !
Kamini Sinha
मेरे ब्लॉग तक आने, रचना को पढ़ने और सराहने के लिए तह ए दिल से आभार
Sudha ji
मेरे ब्लॉग तक आने, रचना को पढ़ने और सराहने के लिए तह ए दिल से आभार
आपको सृजन भाया। ..लिखना सार्थक हुआ
@ मन की वीणा ji
रचना को पढ़ने और सराहने के लिए तह ए दिल से आभार.....एहसास समझे आपने ..लिखना सार्थक हुआ
हमेशा उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद
खड़ी मायूस हूँ कबसे
खबर ये भी नहीं मुझको
जमीं ये जल गयी कैसे
खबर ये भी नहीं तुमको !
वाह, हृदय के तार झंकृत हुए। बहुत-बहुत सुंदर रचना आदरणीया ।
एक दर्द,पीड़ा और दुःख की गहन अभिव्यक्ति ।
पुरुषोत्तम ji
bahut bahut aabhaar
Meena ji
rchnaa k marm ko smjhne ke liye aabhaar
dhanywaad apkaa
ऎसी रचनाएँ सुकून देती हैं....आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है
एक रचनाकार या एक शायर हमेशा आगे की देख लेता है।
फिर हालिया मायूसी कागज़ पर ज़लज़ले पैदा करती है।
बहुत ज़बरदस्त रचना है।
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