खड़ी मायूस हूँ कबसे
खबर ये भी नहीं मुझको
जमीं ये जल गयी कैसे
खबर ये भी नहीं तुमको !
मेरे घर का जो हो तिनका
सहेजे उसको फिरती हूँ
तो फिर बस्ती जली कैसे
खबर अब भी नहीं तुमको !
सड़क ऐसे थी इक पहले
शहर पहले भी ऐसा था
गली देहकी थी हर ऐसे
खबर ये भी नहीं तुमको ?
वो शायर है जो कहता है
है शामिल खून हम सब का
लो अब मिट्टी हुई काली
खबर ये भी क्या है तुमको ?
खड़ी मायूस हूँ कबसे
खबर ये भी नहीं मुझको
bahut bahut dhanywaad Anita ji
जवाब देंहटाएंblog tak pahunchnane, rchnaa ko is kaabil smjhne ke liye
aabhaar
Hmmm... Bahut khoob...
जवाब देंहटाएंमेरे घर का जो हो तिनका
जवाब देंहटाएंसहेजे उसको फिरती हूँ
तो फिर बस्ती जली कैसे
खबर अब भी नहीं तुमको !
बहुत खूब जोया जी ,सादर नमन
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन...।
वो शायर है जो कहता है
जवाब देंहटाएंहै शामिल खून हम सब का
लो अब मिट्टी हुई काली
खबर ये भी क्या है तुमको ?
लाजवाब जोया जी गहरे एहसास समेटे सुंदर भाव।
CBU ji
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धनयवाद
हमेशा खुश रहें !
Kamini Sinha
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग तक आने, रचना को पढ़ने और सराहने के लिए तह ए दिल से आभार
Sudha ji
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग तक आने, रचना को पढ़ने और सराहने के लिए तह ए दिल से आभार
आपको सृजन भाया। ..लिखना सार्थक हुआ
@ मन की वीणा ji
जवाब देंहटाएंरचना को पढ़ने और सराहने के लिए तह ए दिल से आभार.....एहसास समझे आपने ..लिखना सार्थक हुआ
हमेशा उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद
खड़ी मायूस हूँ कबसे
जवाब देंहटाएंखबर ये भी नहीं मुझको
जमीं ये जल गयी कैसे
खबर ये भी नहीं तुमको !
वाह, हृदय के तार झंकृत हुए। बहुत-बहुत सुंदर रचना आदरणीया ।
एक दर्द,पीड़ा और दुःख की गहन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंपुरुषोत्तम ji
जवाब देंहटाएंbahut bahut aabhaar
Meena ji
जवाब देंहटाएंrchnaa k marm ko smjhne ke liye aabhaar
dhanywaad apkaa
जवाब देंहटाएंऎसी रचनाएँ सुकून देती हैं....आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है
एक रचनाकार या एक शायर हमेशा आगे की देख लेता है।
जवाब देंहटाएंफिर हालिया मायूसी कागज़ पर ज़लज़ले पैदा करती है।
बहुत ज़बरदस्त रचना है।