गुरुवार, फ़रवरी 27, 2020

खबर अब भी नहीं तुमको ?


खड़ी मायूस हूँ कबसे
खबर ये भी नहीं मुझको 
जमीं ये जल गयी कैसे
खबर ये भी नहीं तुमको !

मेरे घर का जो हो तिनका 
सहेजे उसको फिरती हूँ 
तो फिर बस्ती जली कैसे 
खबर अब भी नहीं तुमको !

सड़क ऐसे थी इक पहले 
शहर पहले भी ऐसा था 
गली देहकी थी  हर ऐसे 
खबर ये भी नहीं तुमको ?

वो  शायर है जो कहता है 
है शामिल खून हम सब का 
लो अब मिट्टी हुई काली
खबर ये भी क्या है तुमको ?

खड़ी मायूस हूँ कबसे
खबर ये भी नहीं मुझको 
गली हर जल उठी फिर से ,
खबर अब भी नहीं तुमको ?


:-ज़ोया 
#ज़ोया 


15 टिप्‍पणियां:

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

bahut bahut dhanywaad Anita ji

blog tak pahunchnane, rchnaa ko is kaabil smjhne ke liye

aabhaar

Cbu ने कहा…

Hmmm... Bahut khoob...

Kamini Sinha ने कहा…

मेरे घर का जो हो तिनका
सहेजे उसको फिरती हूँ
तो फिर बस्ती जली कैसे
खबर अब भी नहीं तुमको !

बहुत खूब जोया जी ,सादर नमन

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
बहुत सुन्दर सृजन...।

मन की वीणा ने कहा…

वो शायर है जो कहता है
है शामिल खून हम सब का
लो अब मिट्टी हुई काली
खबर ये भी क्या है तुमको ?

लाजवाब जोया जी गहरे एहसास समेटे सुंदर भाव।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

CBU ji


बहुत बहुत धनयवाद
हमेशा खुश रहें !

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Kamini Sinha

मेरे ब्लॉग तक आने, रचना को पढ़ने और सराहने के लिए तह ए दिल से आभार

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Sudha ji

मेरे ब्लॉग तक आने, रचना को पढ़ने और सराहने के लिए तह ए दिल से आभार
आपको सृजन भाया। ..लिखना सार्थक हुआ

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

@ मन की वीणा ji

रचना को पढ़ने और सराहने के लिए तह ए दिल से आभार.....एहसास समझे आपने ..लिखना सार्थक हुआ

हमेशा उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ने कहा…

खड़ी मायूस हूँ कबसे
खबर ये भी नहीं मुझको
जमीं ये जल गयी कैसे
खबर ये भी नहीं तुमको !
वाह, हृदय के तार झंकृत हुए। बहुत-बहुत सुंदर रचना आदरणीया ।

Meena Bhardwaj ने कहा…

एक दर्द,पीड़ा और दुःख की गहन अभिव्यक्ति ।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

पुरुषोत्तम ji


bahut bahut aabhaar

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Meena ji

rchnaa k marm ko smjhne ke liye aabhaar
dhanywaad apkaa

संजय भास्‍कर ने कहा…


ऎसी रचनाएँ सुकून देती हैं....आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है

Rohitas Ghorela ने कहा…

एक रचनाकार या एक शायर हमेशा आगे की देख लेता है।
फिर हालिया मायूसी कागज़ पर ज़लज़ले पैदा करती है।
बहुत ज़बरदस्त रचना है।