मुद्दतों से खारे पानी से भिगो
चांदनी के नरम कपड़े में लपेट
दिल की लाल गर्म कटोरी में रखा है
आस का चाँद
किसी सुबह अंकुरित हो ही जाएगा,
फुट आये शायद उसमे नया चाँद कोई
शायद आस में नवप्राण पड़ ही जाएँ
पुराने चाँद से तोड़
उम्मीदों की पोटली के इक कोने में
संभाल के रख लुंगी उस अंकुरित आस को
जब भी भूखो मरने लगेगी
उम्मीद कोई फिर आदतन,
तोड़ के इक टुकड़ा उस चाँद का
निवाला बना निगल जाऊँगी
शायद ऐसे ही कर
भूखी उम्मीदों का पेट भर पाउंगी !
मुद्दतें हुईं भिगो के रखा है आस का चाँद
23 टिप्पणियां:
आपकी उम्मीद की पोटली सराहनीय है...
संभाल के रख लुंगी उस अंकुरित आस को
उम्मीदों की पोटली के इक कोने में बाँध दूंगी
जब भी भूखो मरने लगेगी कोई उम्मीद फिर से
तोड़ के इक टुकड़ा उस चाँद के अंकुर का
निवाला बना मैं निगल जाउंगी .......
शायद ऐसे भूखी उम्मीदों का पेट भर पाउंगी..
उम्मीद जगाती सुंदर रचना।
Yashoda ji
bahut bahut aabhar ....meri rchnaa ko is kaabil smjhne ke liye
aap hmesha utsaah bdhaati hain
dhanywaad
पुरुषोत्तम जी
ब्लॉग तक आने, रचना को मन से पढ़ने और सराहने के लिए आभार ....आपने रचना के मर्म को समझा। .लिखना सार्थक हुआ
आभार ...
एक सुखद अनुभूति..आपकी नई पोस्ट ..चाँद का अंकुरण-
मुद्दतें हुईं भिगो के रखा है आस का चाँद
किसी सुबह अंकुरित हो ही जाएगा
अद्भुत और अद्वितीय.. आपकी लेखनी में ताजगी है जिसको पढ़ना सुखद लगता है मुझे । बहुत दिनों के बाद लिखा..शायद व्यस्त थीं आप । हार्दिक बधाई सुन्दर लेखन हेतु जोया जी ।
Meena ji
इतने स्नेहिल शब्दों के लिए बहुत बहुत आभार
बहुत ही खुसी हुई आपसे ये शब्द आ कर
जी वयसत नहीं बहुत ही ज़्यदा व्यस्त और शायद आगे भी रहूं। ... मगर मन की उथल पुथल जब जवार भाटा का रूप ले लेती हैं तो बस फिर रुका नहीं जाता
युहीं साथ बनाये रखें और अपने लेखन से खुशबु बिखेरती रहें
सादर आभार
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 06 - 03-2020) को "मिट्टी सी निरीह" (चर्चा अंक - 3632) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
अनीता लागुरी"अनु"
जब जब ब्लॉग पर आता हूँ बहुत ही प्रसन्न होता हूँ आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
नमस्ते जोया जी..
काफी दिनों के बाद आपकी कोई रचना आई है... लेकिन इतने इंतजार के बाद इतनी खूबसूरत रचना पढ़ने को मिली इसकी मुझे बेहद खुशी महसूस हो रही है.. "किसी दिन अंकुरित हो ही जाएगा" ऐसी पंक्तियां आज तक मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी बेहद खूबसूरत और कोमलता का एहसास लिए हुई.!👌💐👌💐
आपके अंदर के कोलाहल को आपने बेहद खूबसूरती से उकेर दिया. लिखते रहा कीजिए ढेर सारी शुभकामनाएं और धन्यवाद
बिल्कुल अलहदा भाव!
गहराई में से विचारों को एहसास से गूंथ कर
एक आकार देना और दिल तक उतर जाना
ऐसे ही होते हैं भाव आपके जोया जी ।
सुंदर लाजवाब।
मुद्दतें हुईं भिगो के रखा है आस का चाँद
किसी सुबह अंकुरित हो ही जाएगा
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर अद्भुत लाजवाब सृजन।
अनु
रचना को इस काबिल समझने के लिए तह ए दिल से आभार
युहीं स्नेह बनाये रखें
संजय जी
धन्यवाद ब्लॉग का रास्ता याद रखने के लिए। ..
आपके शब्द हमेशा उत्साह बढ़ाते आएं हैं
बहुत बहुत आभार
अनु
इतने स्नेहिल सन्देश के लिए स्नेहिल आभार। ... हाँ बहुत वक़्त बाद आयी। ..जीवन अपने भंवर में खूब घुमा रहा हे और मैं इक तिनके की तरह आत्मसमपर्ण कर घूम रही हूँ :)
बहुत ख़ुशी आपके शब्द पा कर
युहीं स्नेह बनाये रखें और उत्साह बढ़ते रहे
रचना को प्यार देने के लिए बहुत आभार
Sudha ji
युहीं स्नेह बनाये रखें और उत्साह बढ़ते रहे
रचना को प्यार देने के लिए बहुत आभार
कुसुम जी
इतने प्यारे शब्दों के लिए बहुत बहुत धनयवाद
बस आपकी तरह अच्छा लिख पायउँ यही कोशिश है
ब्लॉग तक आने और रचना को साथ देने के लिए आभार
वाह, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.. आस का चाँद और उसका एक दिन अंकुरित होना...
बहुत ही सुन्दर रचना दिल की गहगहराइयों में खुलती हैं और आखों को नम कर जाती ..........
किसी दिन तो आएगी कोई उम्मीद
झरने से झरकर
कोई तो सूरत दूंगा मैं उसे।
एक बार को अंकुरण ही सही।
गज़ब की रचना।
नई रचना- सर्वोपरि?
Munish ji
ब्लॉग तक आने और रचना को साथ देने के लिए आभार
Rohitas ji
ब्लॉग तक आने और रचना को प्यार देने के लिए बहुत आभार
युहीं स्नेह बनाये रखें और उत्साह बढ़ते रहे
वाह ... बहुत ही लाजवाब ...
कवि की कल्पना की कोई सीमा नहीं और चाँद पे तो असंख्य कल्पनाएँ हैं ... जिसमें ये भी एक नयी कल्पना है ... लाजवाब कल्पना है ...
बहुत ही गहरी सोच ....
जब भी भूखो मरने लगेगी
उम्मीद कोई फिर आदतन,
तोड़ के इक टुकड़ा उस चाँद का
निवाला बना निगल जाऊँगी
वाह।
बहुत मासूम और cute सी लगी ये poem।
अच्छा लगा पढ़कर।
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