गुरुवार, जून 18, 2020

.................................................जीने भी दो यारो !


जीने भी दो यारो उसको  मरके ,
जाके वापिस कभी नहीं आते 
वहाँ वो शायद चैन से होगा 
वहाँ पे इंसां नहीं हैं जाते  
मरके भी देख लिया है उसने 
लोग अब भी बाज़,नहीं हैं आते 
जीते जी तो छोड़ा नहीं 
अब उसपे कायर का दाग़  लगाते 

जीने भी दो यारो कुछ तो 
क्यों  हो विषैले तीर चलाते 
भालों से भी तीखे शब्द हैं 
सब मन पत्थर हो नहीं पाते 
जीने भी दो यारो हमको 
सिखलाती लाश ये जाते जाते 
कम तो बस ये ज़िंदगी है 
मौत का क्या ? मिल जाए आते जाते 


ज़ोया ****

21 टिप्‍पणियां:

  1. कम तो बस ये ज़िंदगी है
    मौत का क्या ? मिल जाए आते जाते ...
    मर्मस्पर्शी सृजन जोया जी 🙏🙏

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 19 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. "मौत का क्या? मिल जाये आते-जाते" वाह! गहरे अर्थों को समेटती पंक्तियाँ। बधाई!

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२० -०६-२०२०) को 'ख्वाहिशो को रास्ता दूँ' (चर्चा अंक-३७३८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  5. ये यार
    अगर जीने दें
    तो कौन मरे यूँ यहाँ
    एक बार आके?

    सटीक ।

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  6. भालों से भी तीखे शब्द हैं
    सब मन पत्थर हो नहीं पाते
    बिलकुल सही ज़ोया जी
    बढ़िया रचना

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  7. Meena जी
    बहुत बहुत आभार। ..रचना के मर्म को समझा और सराहा

    ह्रदय की गहराईयों से धन्यवाद

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  8. yashoda Agrawal जी
    रचना को पढ़ने और चयन करने के लिए आभार



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  9. विश्वमोहन जी
    युहीं उत्साह बढ़ाते रहें
    बहुत बहुत आभार .. 😊🙏

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  10. अनीता सैनी जी


    रचना को अपना समय और सरहाना देने के लिए धन्यवाद 😊🙏

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  11. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी

    सादर नमन

    आपसे सरहाना पाना गर्व की बात है
    उत्साह बढ़ाने और रचना को सरहाने के लिए धन्यवाद 😊🙏

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  12. सुशील कुमार जोशी जी
    सत्य वचन
    यार दोस्त ऐसे शब्दों की परिभाषा अब बदल चुकी है
    रचना को अपना समय और गहन ध्यान देने के लिए आभार
    😊🙏

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  13. hindiguru जी
    सादर नमन
    आभार
    ब्लॉग तक आने और अपना बहुमूल्य समय रचना को देने के लिए धन्यवाद

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  14. मरके भी देख लिया है उसने
    लोग अब भी बाज़,नहीं हैं आते
    जीते जी तो छोड़ा नहीं
    अब उसपे कायर का दाग़ लगाते
    बहुत ही सटिक अभिव्यक्ति। लोग मारने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते।

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  15. मौत के बाद ...
    सच अहि इंसान की फितरत ऐसी है ... किसी को चैन मिले या न ... पर जीते हुए इंसान को कभी चैन नहीं आता ... हर हालात में इर्षा, द्वेष और अपने स्वार्थ में लगा रहता है ...
    बहुत गहरी सोच और अनुभव भरी रचना ...

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  16. Jyoti Dehliwal जी

    ब्लॉग तक आयीं , मेरी रचना को अपना अमूल्य समय दिया इसके लिए ह्रदय से आभार

    रचना को समझने और सराहने के लिए धनयवाद

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  17. दिगंबर नासवा जी



    सच कहा अपने , जाने क्या मुसीबत हो रखी है आजकल इंसान को

    जो जैसे जीता है जीने दो। .. पर नहीं

    शायद िसिये कोरोना जैसी सज़ाएं पा रहे हैं हम

    रचना को अपना अमूल्य समय दिया इसके लिए ह्रदय से आभार

    रचना को समझने और सराहने के लिए धनयवाद

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