गुरुवार, अगस्त 19, 2010

रात के इस चार बजे


 
ना आवाज़ ही किसी की

ना ही खटका किसी का

चाँद भी ऊंघ-२ के सो गया

दूर दूर तक फैले सन्नाटे

बारिश में गीली हुई सड़कें

ये भी मानो थक के सो गयी

पेड़ भी अपने काँधे झुकाए

गहरी सी नींद में लगते हैं

और रात के इस चार बजे

बस दो चीज़ें ही गोल गोल

लगातार बेसुधी में घूम रही हैं

 
इक मेरी छत का ये पँखा

और इक मेरी ये दो आँखें !!!!!!!
.
 
 

15 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभावित करती हैं कवितायेँ. आपकी सोच का दायरा काबिले तारीफ़ है. लिखते रहिये, इसी तरन्नुम में, इसी अंदाज़ में ...

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  2. Venus ji , sach kahun kayi baar maine bhi aisa hi mehsoos kiya hai..aisa lag raha tha jaise main apni hi koi nazm padh raha hu...aur wo pankha ghoomne waali baat to bilkul aisa laga jaise aapne mere dil ki aat likh di ho...bahut achhi feel hai nazm ki...padhna bahut bhaya :)

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  3. naye andaz mey likhi ye nazm mujhey pasand ayee,aapmey baaton ko samajh kar likh pane ki kableeyat hat.swagat ,shubhkamnayen
    dr.bhoopendra
    jeevansandarbh.blogspot.com

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  4. beautiful.....

    "Zoya (Russian) is a feminine Russian first name, a variant of Zoe. Meaning "life."

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  5. Oh noooo! Realy I'v no words....U r not only depicting your feelings but livilng in poems with all your isness.It is hard to say whether U r in the poems or the poems r in you. Aapki abhivyakti andar tak bhigaa jaati hai,kripayaa barasti rahen.

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  6. सुभानाल्लाह ....पोस्ट की तस्वीर और कविता अच्छी लगी....पर आखिर में घुमने वाली दो चीजों में मुझे पंखा नहीं जंचा..

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  7. हा हा वाह तत्क्षण आशु काव्य!

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  8. प्रभावशाली प्रस्तुति

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  9. वाह वाह वाह
    अच्‍दा लगा आपका ब्‍लॉग
    http://chokhat.blogspot.com/

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  10. aap sab kaa tah e dil se shkriyaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa
    hounslaa afzaaayi ke liye........bhii
    take care

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  11. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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