गुरुवार, अक्टूबर 14, 2010

बिखरे पलों के बिखरे-२ ख्यालो ओ लफ्ज़




पाया है अक्सर
मैंने बस तुम्हे

रात दो बजे
टूटी नींद में

सुबह तक जागीं
भीगी नजर में

दिन भर भागती
मशनी जिंदगी में

शाम के बोझिल
थके कदम में

तन्हाई में गूंजती
गर्म चाये की
अकेली चुस्कियौं में

बेवजह युहीं बस
जीने के लिए
हलक से निगले
हर निवाले में

खुद से खुदही
चुपचाप झगड़ने में

तारात जाग कर
रात काटने में

सोच सोच कर
नींद आने में

पाया है अक्सर
मैंने बस तुम्हे

रात दो बजे
टूटी नींद में

सुबह तक जागीं
भीगी नजर में

पाया है अक्सर
मैंने बस तुम्हे ......

10 टिप्‍पणियां:

  1. बेवजह युहीं बस
    जीने के लिए
    हलक से निगले
    हर निवाले में

    खुद से खुदही
    चुपचाप झगड़ने में

    खूबसूरत नज़्म किये
    अपने जज़्बात
    बहुत बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  2. bhavpoorna rachana .........shabda shabda dil me utar gaya ...........ek achchhi rachana ke liye dhanyavaad

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर रचना पढ़ते मन नहीं भरता ----आपने ब्लॉग को सुन्दर ढंग से बनाया है ब्लॉग बहुत अच्छा लगा वह भी कबिता जैसा ही है.
    इतनी सुन्दर कबिता हेतु बहुत-बहुत बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  4. नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  5. kismat vaale hain vo
    jinke paas apanaa kahane ko kuchh to hai
    fir bhale hee ye
    तन्हाई ही क्यों ना हो /
    कुछ बदकिस्मत लोगों को तो यह भी नसीब नहीं /
    दिल की बात कहें भी तो किससे ?
    सोचता हूँ तन्हाई से दोस्ती करना
    कितना सुकून देता होगा /

    एक अरसे बाद ब्लॉग पर आपको देख कर अच्छा लगा. ये खुद से लड़ने की बात अच्छी कही आपने. लड़ो....खूब लड़ो .......पर कभी हार कर मत आना.

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन नज्म भावपूर्ण मनस्पर्शी....

    जवाब देंहटाएं