गुरुवार, नवंबर 04, 2010

मंदी


जब फुर्सत थी तब ये गम रहा
के सारा वक़्त
तेरे ख्यालों ने निगल लिया
और अब जब
फुर्सत पल भर की नही
तो ये गम के
तुझको इक पल न दिया

ये कैसे कारोबार में
उलझा के बैठ गयी खुद को
लेन देन चाहे
जैसा भी हो जितना भी हो
मंदी ही रहेगी !

2 टिप्‍पणियां:

' मिसिर' ने कहा…

तेज़ी-मंदी चलती रहती है वीनस जी ,
बिना उतार-चढ़ाव के समतल रस्ते पर चलते रहना भी
नीरस रहेगा !
इस खूबसूरत नज़्म के लिए बधाई !

Dr Xitija Singh ने कहा…

bahut khoobsurat rachna ...

ज्योति पर्व के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।