गुरुवार, नवंबर 11, 2010

फिर वही तन्हाई



फिर वही मैं
फिर वही रात
फिर वही तन्हाई

और पास है
वही तुम्हारी याद

नमी लिए हुए
सूखी राख सी

गूंजती सी खामोशी
वही पुरानी सी
दौडती भागती सड़कें
खिड़की से झांकती

मेरी तन्हा आँखें
कभी बाहर देखती

कभी देखती घड़ी
इजाज़त मांगती ज्यूँ
सोने के लिए

दिमाग ओ दिल
से ले कर
घर तक फैली
फिर वही तन्हाई 

सब कुछ वही

फिर वही मैं
फिर वही रात
फिर वही तन्हाई

सब कुछ वही......!

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