गुरुवार, नवंबर 11, 2010

फिर वही तन्हाई



फिर वही मैं
फिर वही रात
फिर वही तन्हाई

और पास है
वही तुम्हारी याद

नमी लिए हुए
सूखी राख सी

गूंजती सी खामोशी
वही पुरानी सी
दौडती भागती सड़कें
खिड़की से झांकती

मेरी तन्हा आँखें
कभी बाहर देखती

कभी देखती घड़ी
इजाज़त मांगती ज्यूँ
सोने के लिए

दिमाग ओ दिल
से ले कर
घर तक फैली
फिर वही तन्हाई 

सब कुछ वही

फिर वही मैं
फिर वही रात
फिर वही तन्हाई

सब कुछ वही......!

5 टिप्‍पणियां:

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Sunil Kumar ने कहा…

khubsurat ahsas badhai

Dr Xitija Singh ने कहा…

bahut achha laga ek arse baad aapko yahaan dekhna ... wo bhi ek khoobsurat rachna ke saath ... bahut khoob ...

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

aap sab ka tah e dil se shurkiyaaaa

अरुण अवध ने कहा…

बस..................नमी लिए सूखे अहसास सी नज़्म !
खूबसूरत !
arunmisir.blogspot.com