सांझी पाती ..अनोखे अनदेखे पिता और अनदेखी अनोखी बेटी की
आश्चर्य होता है
कैसे
तमाम अर्थहीन रिश्तों के साथ
गुज़रते रहे साल-दर-साल
महत्वपूर्ण ज़िंदगी के महत्त्व पूर्ण दिन
बस बंटते गये गैर महत्त्व पूर्ण पलों में
बड़े होते रहे औपचारिकताओं के पहाड़
और दिन प्रतिदिन छोटा होता रहा
मेरा अस्तित्व,मेरे व्यवहार का दायरा
सिमटती रही चंद क़दमों तक ही
रिश्तों की गर्माहट
और इक दिन ......
न जाने कैसे ....न जाने क्यों....
भरी दोपहरी में शब्दों की लकड़ी से बना
दूर .......कहीं खुल गया इक झरोखा
और आ गया मेरे तपते उमस भरे कमरे में
ठंडी हवा का इक अनदेखा अनोखा झोंका
ले स्नेह भरा स्पर्श
निः शर्त .......
देने कुछ पल को सुकूं
और मेरे कान में यह कहने
चुपके से ..कि...
यूँ ही पनपते हैं
यूँ ही पनपते हैं
कुछ रिश्ते..शहद की तरह
घोल देने जिन्दगी में एक अनाम सी मिठास
यूँ ही बिना किसी शर्त के ....
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5 टिप्पणियां:
मान गए जोया जी !
शब्द नहीं हैं ...मेरे पास ........पिता और पुत्री की सांझी पाती .........
बस इतना ही कहूंगा ........वेवलेंग्थ अच्छी मिली है .......क्या ट्यूनिंग है ! अभिभूत हूँ मैं.
यूँ ही पनपते हैं
कुछ रिश्ते..शहद की तरह
घोल देने जिन्दगी में एक अनाम सी मिठास
यूँ ही बिना किसी शर्त के ....
कितना सही लिखा और अच्छा लिखा है आपने .....
शब्द लाइन वही... पर व्याख्या सभी की अपनी
नज़्म का शीर्षक काफी भावपूर्ण और जिज्ञासा पैदा करने वाला है ........
दिन भर न्यूज़ न्यूज़ करते थक जाता हूँ , आप के शब्दों की लड़ियाँ इस दिल के अहसास को जगा देती है....अभी हाल ही में आप को पढ़ना शुरू किया है लेकिन इतना तो कह ही सकता हूँ, आप के शब्दों में अहसासों और मोहब्बत की बारिश होती है...
Bahut pyaari kavita hai Venus Ji. pata nahi kaun si duniya ki sair kara di mujhko. Dil ke kareeb rahi. :)
-Gaurav
aap sab ka tah e dil se shurkiyaaaa
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