सोमवार, दिसंबर 27, 2010

पलाश के फूल -2


 अचानक कुछ हाथ लगा
पुरानी सी इक किताब
खोलते ही कुछ राख-२ सी
फर्श पे बिखर गयी
आह ! पलाश के सूखे फूल
जो
युहीं संजो रखे थे मैंने
माज़ी  की किताब में
रंग उड़ चूका है इनका
कलियाँ मुरझा चुकीं
 मुड़े - तूड़े से पड़े हैं !
वक़्त की आग में सूख के
राख-राख  से हो गये हैं
खुशबू ना तो तब थी
ना अब ही है इनमे !

पसंद सोच समझ के
बनानी चाहिए !

गुलाब के फूल भले
सूख क्यूँ ही ना जाए
कभी तो महकते हैं ये
और सूखने पर भी इनमे
इक ख़ूबसूरती रहती है

पलाश के फूल
कभी नही महकते
और लाल चटक रंग इनका
वक़्त की हवा के साथ
उड़ जाता है, ...और
 तब ....पलाश के फूल
बहुत बदरंग नज़र  आते हैं !
.
.


10 टिप्‍पणियां:

  1. क्या खूब लिखा है बेहद गहन्।

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  2. पलाश के फूल
    कभी नही महकते
    और लाल चटक रंग इनका
    वक़्त की हवा के साथ
    उड़ जाता है, ...और
    तब ....पलाश के फूल
    बहुत बदरंग नज़र आते हैं !

    फूलों के माध्यम से संबंधों पर बहुत ही अहसासपूर्ण रचना..सुन्दर विम्ब..बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..भावों का शब्दों में अच्छा संयोजन..

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  5. हा हा हा .........! मोगैम्बो खुश हुआ ........बहुत खुश हुआ ......अदरख वाली चाय बनाकर भेजूं क्या ? अब तुमने प्रज्ञा-पूर्वक discriminate करना सीख लिया है मेरी बच्ची ! आज मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. खुश रहो.....तुम्हें मेरी उम्र लग जाय.

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  6. सच रिश्ते सोच कर बनाने चाहिए ..पर यह सोच ही तो गायब हो जाती है ...

    फूलों के माध्यम से एक असरदार रंग दिखाया

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  7. सुंदर -बहुत सुंदर कल्पना -
    सुंदर सोच और सुन्दरता से लिखी गयी -

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