अचानक कुछ हाथ लगा
पुरानी सी इक किताब
खोलते ही कुछ राख-२ सी
फर्श पे बिखर गयी
आह ! पलाश के सूखे फूल
जो
खोलते ही कुछ राख-२ सी
फर्श पे बिखर गयी
आह ! पलाश के सूखे फूल
जो
युहीं संजो रखे थे मैंने
माज़ी की किताब में
रंग उड़ चूका है इनका
कलियाँ मुरझा चुकीं
मुड़े - तूड़े से पड़े हैं !
वक़्त की आग में सूख के
राख-राख से हो गये हैं
वक़्त की आग में सूख के
राख-राख से हो गये हैं
खुशबू ना तो तब थी
ना अब ही है इनमे !
पसंद सोच समझ के
बनानी चाहिए !
गुलाब के फूल भले
सूख क्यूँ ही ना जाए
कभी तो महकते हैं ये
और सूखने पर भी इनमे
इक ख़ूबसूरती रहती है
इक ख़ूबसूरती रहती है
पलाश के फूल
कभी नही महकते
कभी नही महकते
और लाल चटक रंग इनका
वक़्त की हवा के साथ
उड़ जाता है, ...और
तब ....पलाश के फूल
बहुत बदरंग नज़र आते हैं !
.
.
उड़ जाता है, ...और
तब ....पलाश के फूल
बहुत बदरंग नज़र आते हैं !
.
.
क्या खूब लिखा है बेहद गहन्।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna....laazwaab...
जवाब देंहटाएं*काव्य-कल्पना*
गहरे जज्बात के साथ बहुत ही भावपूर्ण व सुंदर कविता .........
जवाब देंहटाएंफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
पलाश के फूल
जवाब देंहटाएंकभी नही महकते
और लाल चटक रंग इनका
वक़्त की हवा के साथ
उड़ जाता है, ...और
तब ....पलाश के फूल
बहुत बदरंग नज़र आते हैं !
फूलों के माध्यम से संबंधों पर बहुत ही अहसासपूर्ण रचना..सुन्दर विम्ब..बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..भावों का शब्दों में अच्छा संयोजन..
aap sab ka tah e d il se shurkiya
जवाब देंहटाएंtake care
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहा हा हा .........! मोगैम्बो खुश हुआ ........बहुत खुश हुआ ......अदरख वाली चाय बनाकर भेजूं क्या ? अब तुमने प्रज्ञा-पूर्वक discriminate करना सीख लिया है मेरी बच्ची ! आज मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. खुश रहो.....तुम्हें मेरी उम्र लग जाय.
जवाब देंहटाएंसच रिश्ते सोच कर बनाने चाहिए ..पर यह सोच ही तो गायब हो जाती है ...
जवाब देंहटाएंफूलों के माध्यम से एक असरदार रंग दिखाया
सुंदर -बहुत सुंदर कल्पना -
जवाब देंहटाएंसुंदर सोच और सुन्दरता से लिखी गयी -