रविवार, दिसंबर 05, 2010

..प्यार में-NO फॉर्मेलिटीज़...........



घडी की तरफ फिर भारी सी नज़र दौडाई
7:20 का टाइम घडी पे यूँ लग रहा था
मानो वो भी मुहं बिचका रही हो बेचारी
जैसे कह रही हो,चलते चलते थक गयी हूँ
एक बारी तो मैं मुस्कुरा ही पड़ी मन में

और उस से कहा-कहो तो Cell निकाल दूँ

इधर-उधर सरसराती हुई नज़र फिर घुमाई
मेज़ पे इक रंगीन सी मैगजीन देखी-गृह्शौबा
चलो आज ये ही सही,पन्ने उलट पुलट के देखें
हद है कोई कैसे पड़ता होगा ये सब Topics
सौन्दर्य-विज्ञान,घरेलू नुस्खे, फलाना धिमकाना
रखने ही लगी के एक line पे नज़र पर गयी

..........प्यार में-NO फॉर्मेलिटीज़............

तभी पीछे से आवाज़ आई-चल बहन कट ले
उसके बोलने के अंदाज़ पे हमेशा हंसी आती है मुझे
कोई सुने तो क्या मानेगा ये रिसर्च फिल्ड में है

निकलते निकलते नज़र फिर उसी पन्ने पे जा पड़ी
इक पल युईं कदम रुक गये,और कहीं खो गयी
दीमाग की दीवारों से वो शब्द बार-२ टकराने लगे
मैं कब वहां से निकल गाडी सड़क पे दौडाने लगी
इसका एहसास तब हुआ जब जोर-२ से हार्न सुना
कब भीड़ भरी सड़क पे आ पहुंची ख्याल नही
इक बार तो सुन्न पर गयी,जल्दी ही सम्भाल लिया
अपनी भूल पे शर्मिंदगी से मुहं बिचका लिया मैंने
इसी बात पे घडी याद आ गयी ,और मुस्कुरा उठी
अचानक से एक आंसू छलक के बाहर आ गिरा
यूँ लगा कह रहा हो,......"ऐसा न मुस्कुराया करो
देखो दवाब से मैं आँख से बाहर आ पड़ा
पर दीमाग जैसे सिर्फ उन्ही शब्दों में उलझा हो

..........प्यार में-NO फॉर्मेलिटीज़............
प्यार में औपचारिकता नही,

मैंने तो कभी नहीं की

और तुमने भी तो कभी भी नही की ओपचारिकता
मैंने तुमसे कभी सवाल नही किये,कभी भी नही
आने जाने का हिसाब,वक़्त की दरकार,कुछ भी नही
अक्सर तुमपे सम्पूर्ण  अधिकार का एहसास रहा मुझे
इसीलिए तुम्हे कभी खुद के बाँध के नही रखा मैंने
तुम भी तो अक्सर यही कहते थे,
तुम्हे पा चूका हूँ मैं
अब बस जी चाहता है सबसे ऊँचे मकाम तक जा पहुंचू
तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में ये देख के यूँ लगता है मानो
मेरी उड़ान को नये इन्द्र्ध्नुशीय पंख मिल गये हैं
देखना तुम इक दिन हम कहाँ से कहाँ जा पहुंचेंगे
मैं तो बस तुम्हारी बातें सुन के मुस्कुराती रहती
कभी खुद पे गर्व का एहसास होता,कभी हया का
मैंने तो कभी तुमसे हमारे लिए वक़्त भी नही माँगा
तुम आते,तुम जाते,कहते-सुनाते और फिर चले जाते
तुमसे मैंने कभी कुछ कहा नही-कुछ नही माँगा
 
एक लाल गुलाब,एक आइस-क्रीम,एक चोकलेट
एक छोटी सी शाम,इक निवाला खाने का
ये सब बस कभी कभी तुम्हारे साथ बस इतना ही
बस इतनी सी मांगे हीं तो थी जो तुमसे चाहती थी
पर मैंने कभी तुमसे कुछ कहा तो नही,कभी नही
देख रही थी वक़्त को गुजरते, हाथों से रेत फिसलते
अपने आशंकाओं और परेशानियों का बोझ जानती थी
तुम्हारे पंखों से बाँध उड़ान धीमी नही करना चाहती थी
मैंने कभी तुमसे कुछ कहा नही,सोचा तो पर कहा नही
तुम्हारे प्यार से सराबोर मैं सब से अलग रहती
अपनी राहों को तुम्हारे कदमो से जोड़े चलती
मेरी हंसी.मेरी ख़ुशी.मेरी मंजिल.मेरा रास्ता सिर्फ तुम
एक बार तो तुम खुद भी हंस के बोल उठे थे
जानती हो तुम तो मुझे मेरी गुड़िया सी लगती हो
हाँ ,शायद मैं गुड़िया सी बन के रह गयी थी उस वक़्त
पर आज सोचती हूँ तब क्यूँ नही कहा
"नही,मैं गुडिया नही"
मैं जीती जागती इसान हूँ,
तुम्हारी हूँ , पर गुडिया नही
तुमसे शिकायत नही है,
जानती हूँ तुम्हे मुझसे प्यार बहुत है
सोचती थी,,जब प्यार है -तो Formalities क्यूँ
पर आज के हालत देख के ख्याल आता है शायद
उस वक़्त तुमसे कुछ ना कहना ही औपचारिकता थी
तुमसे तो मेरा रिशता ही अधिकार का था, 
कह देती जो दिल में था,
वो जो वक़्त का तकाजा था
क्यूँ जब्त किया मैंने वो सब इस दिल के अंदर
हाँ,शायद मैंने उस वक़्त हमारे रिश्ते में जो किया
वो महज़ एक औपचारिकता ही तो थी
वो सच ही लिखा था उस लाइन में

........प्यार में -No formalities.

ओह ! कब से घर के बाहर आ पहुँच खड़ी हूँ
आज 19 km का रस्ता सदियौं सा लगा !

वो क्या लिखा था उस लाइन.......

........प्यार में -No formalities.................

4 टिप्‍पणियां:

Lams ने कहा…

Yesss!! Yehi to wah nazm hai jo maine padhi thi pehle. ek aur nazm thi na Venus Ji? woh bhi ghadi par thi. Main use ek saans mein padh gaya tha. yah nazm to mujhe pata nahi kahan le gayi thi... thanks un palon ka ehsaas karaane keliye jo kabhi...the! Awesome..hats off!!

Gaurav 'Lams'

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

जोया जी ! खामोश.........गहरे ........ अहसासों को शब्दों का जामा पहनाने में माहिर हैं आप.
वक़्त पर कुछ करने...कहने से चूक गए अगर तो जीवन भर का पछतावा हो जाता है ....फिर भी जीवन चलता रहता है .......अपनी थोड़ी सी खुशियों के साथ....थोड़े से ग़मों के साथ ....वैसे ही जैसे रोज सुबह घड़ी देख कर उग आता है सूरज ....फिर दिन भर चलने के लिए. न जाने क्यों आज ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं ...."अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी , आँचल में है दूध और आँखों में पानी

संजय भास्‍कर ने कहा…

Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.

Reetesh ने कहा…

क्या लिखती हों माशाल्लाह..तुम जोया हो, एक झरोखा हों यादों, एहसासों, ख़्वाबों और मुम्किनात का..कहानी में जो कविता का रस भान है..वो सच इस की जान है...आज कुछ अलग सा ही एहसास हुआ इस कहानीनुमा कविता को पढ़ के..लगता है इस बार कुछ ज़्यादा ही नजदीक से गुजरा हूँ...