मंगलवार, दिसंबर 07, 2010

हैफ!..क्यूँ ...किसलिए



धीरे धीरे सब खत्म होता जा रहा है

देख रही हूं मैं खुद अपनी आँखों से

मेरे सामने -सामने धुल रहा है सब

कासिर भी हूं और आजिज़ भी हूं मैं

ना जाने क्यूँ .......... इसे बचाने में

मेरी आँखों से धुले जा रहें हैं ....सब

सब वो एहसास ओ ख्याल ..जो कभी

इक नई नज़्म नई ग़ज़ल नये गीत की

बुनयाद के लिए दिल में फ़राहम होते

धुल रहे हैं ..मेरे दिल के सफों पर से

वो लफ्ज़ ......वो ख्याल ....वो लम्हे

जिनसे तखलीक होते थे शब ओ रोज़

किस्सा ओ रूदाद .........जाने कितने

अफ़सुर्दा  हो गये ...........पजमुर्दा  भी

खूनाब यूँ रह रह बरसे ..जो लिखा था

सब मिटता गया ....दिल ओ जेहन से

रमक़ बाकी है शायद या नज़ा है बाकी

सादिक वफा ओ खसलत की मेरी

रह - रह के एक जुंबिश सी उठती है

हैफ!..क्यूँ ...किसलिए ....नही मालूम

अब तो ........उक्बे तक आ पहुंची है

दर्द-आमेज़ , पुरदर्द यादें तेरी, फिर भी

रह- रह के इक जुंबिश सी उठती है

हैफ!..क्यूँ ...किसलिए ....नही मालूम

पर जानती हूं धुल रहा है सब धीरे-२

देख रही हूं मैं खुद अपनी आँखों से !
 
................. धुल रहा है सब धीरे-धीरे!




 
कासिर - unable ;;; आजिज़ -helpless.
फ़राहम - accumulated, collected ;;; तखलीक -creation ,formation
रूदाद - story ;;; अफ़सुर्दा -depressed
पजमुर्दा - withered, faded ,;;; खूनाब -tears of blood
रमक़ - departing spirit or soul ;;; नज़ा- last breath
 सादिक - sincere, faithful :::  खसलत - habit
जुंबिश-movement, shake ;;; हैफ - Ah !
उक्बे - last stage ;;; दर्द-आमेज़ -painful  ;;; पुरदर्द - sorrowful



8 टिप्‍पणियां:

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

जोया जी !
मनोभावों को कितनी खूबसूरती से शब्दों का जामा पहना कर परोस देती हैं आप ! आपकी इसी कला का तो कायल हूँ मैं ....यह एक बेहतरीन नज़्म है ....जिसके लिए मेरे पास शब्द कम पड़ रहे हैं............हाँ ! वक़्त एक ऐसी चीज़ है ज़ो सब कुछ धो देता है हौले-हौले .......दुःख भी सुख भी ......और शायद ये सन्देश भी देता है कि ज़ो गुज़र गया उससे सीख तो ले लो पर चिपको मत ......फिजिक्स भी तो यही कहती है ....nothing is stable in the cosmos ...the world is ever changing .....and why that it is called "ज ...गत"
सब कुछ धुल जाए तो अच्छा ही है न ! सफाई हो जायेगी .........सफ़र फिर शुरू होगा ....नयी ताज़गी के साथ ......प्रकृति नें कितनी बेहतरीन व्यवस्था बनायी है हमारे लिए ...है न !

vandana gupta ने कहा…

सु्न्दर प्रस्तुति।


आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Kaushalendra ji...and Vandna ji........aap dono ka tah e dil se shukriyaa
take care

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वीनस ,

यदि मैं गलत नहीं हूँ तो तुम सीरियस राईटर पर हो ?

खैर यह पूछने का कोई विशेष प्रयोजन नहीं ...बस इस नाम से मैंने वहाँ बहुत पढ़ा है ..

दिल को छूती हुई नज़्म है ...बहुत पसंद आई ..सबसे अच्छी बात की उर्दू शब्दों के अर्थ दिए हुए हैं जिनकी वजह से समझना सरल हो गया ....बहुत अच्छी प्रस्तुति

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

areee Sangeet dii....aap..bhi thi na serious writers pe...ji main wohi venus**** hun.:).........aapko yahan dekh ke asia lg rha he jaise..kabhi kabhi raah me achnak koi purana jan pehchaan me mil jaaye ........kaisi hain aap.............
bahut bahut shurkiyaa............Yaad rkhne.....yahaan tak aane aur sraahane ke liye
thanx
take care

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चलो यहाँ मुलाक़ात हुयी ..मुझे भी बहुत अच्छा लगा ....तुम्हारी नज्मो को हमेशा पसंद किया है ...पढते ही ऐसा लगा की बहुत जानी पहचानी सी हैं ..:):)

आज कल ऑरकुट पर जाना नहीं होता ...बस यहीं ब्लोगिंग में लगी रहती हूँ ....शुक्रिया ...

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

wah! kya khoob likha... kis ada se dard ko sajaaya hai... bahot khoob!

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

anjanaa ji aapkaa bahut bahut dhnywaad