गुरुवार, दिसंबर 09, 2010

पर क्या करे 'ज़ोया', माज़ी बनके मिसाल आता है !




पत्तियां खड़कें गर ज़रा तो दिल काँप जाता है
तू आस पास ही है रह-रह के ख्याल आता है

क्या हम भूल गये , क्या तुम्हे भूल जायेंगे ?
सुबह -शाम ज़ेहन में बस यही सवाल आता है

सीख मुझसे आतिश- फिशां में गुल- फिशां होना
युहीं नही रुखसार पे तजल्ली ओ जलाल आता है

बस इक 'हाँ' भर का फैसला था जो लिया ना गया
उमरों का फासला हुआ रह रह के मलाल आता है

यूँ तो मैं भी कुछ कम ना होती हीर ओ लैला से
बस सिरात में पहले अहल- ओ -'अयाल आता है

ये ताबिंदगी किसी आराइश से नही है रुख पे मेरे
रंज ओ अज़ीयत से फ़ारिघ हो ये हिलाल आता है

मजरूह ओ तनहा ना छोड़ों इनको , करो परस्तिश
माँओं की मुरादों से ही,जिंदगी में इकबाल आता है

हाँ तू नेक है, नेक-सीरत भी और है तू तालिब भी
पर क्या करे 'ज़ोया', माज़ी बनके मिसाल आता है !




***

आतिश-फिशां -volcano
गुल- फिशां -rose-scattering
तजल्ली ओ जलाल -grandeur, dignity
सिरात - way ,path
अहल- ओ -'अयाल -family
ताबिंदगी -brightness, luminousity
आराइश - make up ,decoration
रंज ओ अज़ीयत - pain nd distress
फ़ारिघ-free, discharged
हिलाल -new moon
मजरूह - wounde,hurt
परस्तिश-worship
इकबाल- good luck ,success
तालिब-seeker ,lover

22 टिप्‍पणियां:

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

wah! har sher khoobsurat! par sabse achcha ye laga...

सीख मुझसे आतिश- फिशां में गुल- फिशां होना युहीं नही रुखसार पे तजल्ली ओ जलाल आता है

shukriya!

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

जोयाआआआआआआ!
कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं...जिन्हें ताजिन्दगी सीने से लगाए रखने को जी चाहता है ...........
देख रहा हूँ आजकल कमाल का लिख रही हो .....जीती रहो ......आपको मेरी उम्र लग जाए .....

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

'बस "हाँ" भर का फैसला था ज़ो लिया न गया ............" ..........और फिर उम्र भर के फासले का मलाल...........उफ़....ये दर्द भी ...लगता है कहीं का न छोड़ेगा .....

संजय भास्‍कर ने कहा…

लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी
मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...

संजय भास्‍कर ने कहा…

ये ताबिंदगी किसी आराइश से नही है रुख पे मेरेरंज ओ अज़ीयत से फ़ारिघ हो ये हिलाल आता है
... बेहद प्रभावशाली

अरुण अवध ने कहा…

खूब कहा आपने ,खूबसूरत ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी !

बेनामी ने कहा…

hi venus....i hope u are the venus i'm thinkin u are ;)

in any case.....beautiful blog...fursat se padhna hoga...par bohot bohot hi khoobsurat ghazal hai...too good, pleasure reading u :)

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

@Saanjh......hmmm...
ji..main venus hi hun.pr sach kahun...aapkaa ye kehnaa.""THE VENUS""...it gives a wow feeling.:) :) ...hmm.aap mujhe jaanti hain kyaa....hmm
aapkaaa bahut bahut shurkiya./..yahaan tak aane..aur .....sraahne ke liye
thanx a lot
take care

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

Sangeetaa di...bahut bahut shurkiyaaa.........aapkaa...tah e d sil se

take care

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वीनस , तहे दिल से शुक्रिया ही नहीं ..चर्चा मंच पर आ कर कमेन्ट भी करना ....और हाँ गज़ल बहुत खूबसूरत है ...चर्चा मंच पर लेने के कारण कई बार पढ़ी ....:):)

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Bahut khoob.... Khoobsurat gazal sajha ki.... prabhavi abhivykti....

Kunwar Kusumesh ने कहा…

पत्तियां खड़कें गर ज़रा तो दिल काँप जाता है
तू आस पास ही है रह-रह के ख्याल आता है

आपकी ग़ज़ल के इस मत्ले पर मुझे किसी का एक शेर याद आ रहा है:-

अंदाज़ हुबहू तेरी आवाज़े - पा का था .
देखा पलट के मैंने तो झोका हवा का था.

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

ह्म्म्म..... सांझी कि तरह मुझे भी पुरानी पहचान की खुशबु आ रही है ... ग़ज़ल से भी नाम से और अबाउट मी से भी ... ग़ज़ल में अच्छे ख्याल उतारे हैं आपने ...

The Serious Comedy Show. ने कहा…

bahut badhiyaa.aur haan saath saath lafzon kaa tarjumaa dene ke liye shukriyaa.

vandana gupta ने कहा…

पत्तियां खड़कें गर ज़रा तो दिल काँप जाता है
तू आस पास ही है रह-रह के ख्याल आता है

वाह क्या ख्याल है ……………बेहद प्रभावशाली गज़ल्।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बस इक 'हाँ' भर का फैसला था जो लिया ना गया
उमरों का फासला हुआ रह रह के मलाल आता है

बहुत खूब ... लाजवाब और खूबूरत एहसास हैं इस ग़ज़ल में ... कुछ हकीकत से जुड़े ख्वाब हैं इस ग़ज़ल में ...
ये शेर ख़ास पसंद आया ...

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

वीनस उर्फ 'ज़ोया' जी, बेशक अच्छी ग़ज़ल है ये| काश इसे मैं एक बार में पढ़ते ही समझ पाता, तो टिप्पणी लिखने का भी मज़ा आता| बहरहाल बहुत बहुत बधाई आपको इस उम्दा किस्म की ग़ज़ल के लिए|

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

एक बार पढ़ने से ना मिली तासीर मुझे
हर एक लफ्ज को ख्वाबों में मढ़ता ही गया
कहीं अससास, कहीं विश्वास तो शबनम कहीं
एक, दो, तीन हरबार मैं पढ़ते ही गया.

Kailash Sharma ने कहा…

बस इक 'हाँ' भर का फैसला था जो लिया ना गया
उमरों का फासला हुआ रह रह के मलाल आता है

बहुत कसक देते हैं न लिए गए फैसले..बहुत मार्मिक प्रस्तुति..

The Serious Comedy Show. ने कहा…

bahut shukriyaa blog tak aane ke liye..aapse bahut kuch seekhane ko milegaa.

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

वीनस जी....... बहुत ही प्यारे एहसाह भरे है ग़ज़ल में... सुंदर प्रस्तुति .

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

itne sneh ke liye tah e dil se shukriyaa..yuhin honsla bdhaate rahen