बुधवार, दिसंबर 22, 2010

बचपन की वो छोटी सी पोटली



बचपन की वो छोटी सी पोटली
मेरे ब्रांडेड लैदर पर्स से अच्छी थी  
अलसाती सुस्ताई  नींद की आँखें
इन थखी जर्द  आँखों से अच्छी थी 

मटकते मटकते उछलते कूदते
कटते रस्ते सब स्कूल के
वो पथरीली सड़क मेरे स्कूल की
जिंदगी की भागादौड़ी से अच्छी थी

कान खिंचाई डांट डपटाई
अम्बियाँ-गन्ने चोरी करने पर
ऑफिस में रंजिशो के चलते
इन  तीखे तानो से अच्छी थी

शादी बयाह के खेल वो सारे
दूल्हा दुल्हन और रिश्ते न्यारे
आज के बिखरे रिश्तों से तो
वो मासूम रिश्तेदारी अच्छी थी

दोपहर को रूठे तो शाम मनाये
शाम आके और प्रीत जुडाये  
वो जोड़ घटाव गुना हिसाब
तब की वो दुनियादारी अच्छी थी

 आँखों तले अब सबके देखो 
उदासी, रात, सयाही बसती है  
बचपन में उन अंखियों मंखियों में 
बसती वो धूप बसंती अच्छी थी

आज ये दिल सहता क्या-क्या
पर चेहरा सहज सा दिखता है
बचपन की इक जरा झपट पर  
वो लम्बी रुलाई अच्छी थी

ऊँची छतों से शहरी सूरज
लुकाशिप्पी कर  झाँकता  है
गाँवों की गलियों में उसकी
वो मुहं-दिखाई अच्छी थी

तरसी  हूँ इक रात तो सोऊँ
माँ तेरे  शीतल आँचल में
बिछे इस नर्म बिछौने  से
'माँ' सुन, तेरी छाँव अच्छी थी

तख्ती पे लिखना क , ख , ग
मुल्तानी मीट्टी, काली सियाही
आज के रिसती मेरी कविताओं से
वो तख्ती की कालिख अच्छी थी

अच्छे थे बचपन के वो पल
मेरी वो जिंदगानी अच्छी थी
बचपन की वो छोटी सी पोटली
मेरे ब्रांडेड लैदर पर्स से अच्छी थी



9 टिप्‍पणियां:

  1. तख्ती पे लिखना क , ख , ग
    मुल्तानी मीट्टी, काली सियाही
    आज के रिसती मेरी कविताओं से
    वो तख्ती की कालिख अच्छी थी

    सच्ची बचपन की छोटी सी पोटली बहुत अच्छी थी ...

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  2. कौड़ी-गिट्टी, टूटी डिब्बी ......
    टुकड़े कागज़ के, चमचम पन्नी
    भरा खजाना रहता जेबों में,
    असली के इन नोटों से तो वही अमीरी अच्छी थी.
    बचपन कितना अच्छा था ......है न ! !

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  3. जोया जी ! ये पांचो बच्चे आपके ही हैं न ? ....बड़े शैतान से लग रहे हैं ....हालांकि बहुत प्यारे भी हैं.

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  4. Koshii baba...aapje muhn me ghee shkkr.....[:P]...mere hi hain...ye paanchon..pehchaan lijiye...grmiyon me aapke paas hi aane wale hain....:P
    :P

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  5. अच्छा किया बताके ......मैनें पहले ही एक मोटी सी भैंस खरीद ली है...... देखी नहीं तुमने ? ख़ूब दूध पिलाऊँगा ....और शैतान हो जायेंगे

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  6. बहुत ही प्यारी रचना...सच में बचपन तो बचपन ही होती है..याद आ गया मुझे मेरा बचपन.........आपकी ये सुंदर रचना पढ़ कर।

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