गुरुवार, दिसंबर 23, 2010

सरहाने का दाहिना छोर


जाने क्यूँ सुबह रोज़ आती थी
उसे देखने .....
रोज़ बिस्तर के दाहिने तरफ़
सरहाने का दाहिना छोर पकड़े
मुहं सरहाने में दबा सोयी होती
बायीं तरफ भी इक आकृति दिखती 
पर सुबह सिर्फ उसे एकटक देखती 

वो उठती अपने काम करती ,
पर सुबह उसका सरहना देखती
सरहाने के दाहिने तरफ़, आखिर
रोज़ इतनी नमी क्यूँ होती है ये
सुबह उसके पीछे -पीछे चलती
वो चुपचाप दिन शुरू करती
घड़ी की तरह इक इक कर के
सारा काम निबटाती
और फिर वो हर रोज़
दोपहर से मिलने चली जाती

अगले हर दिन सुबह उसको
फिर देखने आती..जाने क्यूँ
बड़े गौर से घूरती रहती उसको
दूध सा सफ़ेद चेहरा,चमेली सी आँखें
गहरे भूरे लहराते बाल,सुंदर काया
और
सर से पाँव तक पसरी इक ख़ामोशी
और भी जन थे उस घर में मगर
सुबह बस उसे देखती और ......नमी को

इक बार रात से सुना था सुबह ने
वो करवट ले जागी रहती है
कभी-२ घुटन-२ सी सुनती है
शाम से सुना था रात ने इक बार
ता-शाम खामोश रहती है .....वो
दोपहर ने कभी कुछ नही बताया
जाने कबसे सुबह देखती आरही है
ऐसे ही .......उसको
.............
पर आज जब सुबह आई........ तो
वो बिस्तर के दाहिने तरफ़ नही थी
और दाहिने से सिरहाना सुखा था
सुबह ने उसे सारे घर में ढूंढा ,पर
वो कहीं नही ,........
कोई कह रहा था ...साँसे टूट गयी उसकी
सुबह -सुबह ही चली गयी वो

सुबह बिस्तर के दाहिने आ बैठी
सरहाने के दाहिने तरफ़ हाथ लगाया
कुछ खुरदुरा सा था
युहीं बेसुधी में जीभ से चख लिया

उफ्फ्फ्फ़...इतना खारा

जाने कितने युगों का खारापन समेटे है ये  

बरबस आंसू टपक गिरा सुबह की आँख से
और 

सरहाने का दाहिना छोर अब फिर नम है ! 

.

15 टिप्‍पणियां:

The Serious Comedy Show. ने कहा…

gahraa ,bahut gahraa mantavya.
dhanyawaad.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सिराहने का दायाँ छोर अब भी नम है ...नारी की व्यथा कथा लिखने का खूबसूरत प्रयास

Kailash Sharma ने कहा…

उफ्फ्फ्फ़...इतना खारा

जाने कितने युगों का खारापन समेटे है ये

बरबस आंसू टपक गिरा सुबह की आँख से
और

सरहाने का दाहिना छोर अब फिर नम है !

लाज़वाब अहसास..बहुत ही मर्मस्पर्शी भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

vandana gupta ने कहा…

उफ्फ्फ्फ़...इतना खारा

जाने कितने युगों का खारापन समेटे है ये

बरबस आंसू टपक गिरा सुबह की आँख से
और

सरहाने का दाहिना छोर अब फिर नम है !

उफ़! इतना दर्द क्यों भर दिया ……………सच क्यों कह दिया………………।बेहद मार्मिक चित्रण्।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

aap sab ke tah e dil se sshurkiyaa


@@Sangeetaa di....aap ne wo nazariyaa rkhaa ..shayad jo main dikhana chahti thiii..................aap shurkiyuaa

take care

संजय भास्‍कर ने कहा…

अच्छी लगी आपकी शिल्पकारी .
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति !
.........बधाई हो !

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

सुबह रोज़ अनदेखा कर देती है बायीं ओर को ...देखती है तो सिर्फ दाहिनी ओर ही ......शायद उसे अपनापन सा लगता है कुछ ......सुबह भी तो रोज चली जाती है ज़ल्दी ही .....रुकती कहाँ है वह भी ? .......पंखुड़ियों पर बिखरी बूंदों को ज़ल्दी से अपने पल्लू में समेटकर भाग जाती है ज़ल्दी से .........तकिया पर बूँदें ठहरी होतीं तो उन्हें भी समेट लेती शायद . सागर नें भी तो कई बार पूछा है उससे ......उफ्फ ....इतना खारापन ?......मुझसे भी ज्य़ादा ? ..........फिर शायद उसने भी दोहराया था.....याद किया था उसकी चिर कहानी को "........आँचल में है दूध और आँखों में पानी"
....सुबह हमेशा नम होती है ..नाज़ुक से ......खामोश से....अहसासों के बीज अपने आँचल में दबाये .......अन्वेषिका की तरह.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सुंदर लेखन के लिए बधाई।

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

bhut pyaari.........stri ke dard ko bya karti

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


http://charchamanch.uchcharan.com/

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

अकेलापन, आंसूं, वक़्त का गुज़रते रहना, खुद के गुज़र जाने तक... बहोत ग़मगीन तस्वीर बेहद खूबसूरती से बनाई गयी...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सरहाने का दाहिना छोर अब फिर नम है !
bahut hi gahree soch ka hissa -ye nami

सदा ने कहा…

बहुत ही गहराई लिये हुये सुन्‍दर शब्‍द ....।

Dorothy ने कहा…

मर्मस्पर्शी एवं खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

वाणी गीत ने कहा…

सिराहने के दाहिने छोर की नमी ...अंतस को भिगो गयी ...!