आज जाने क्या हुआ सुबह उठते ही मिर्ज़ा ग़ालिब जी की ये ग़ज़ल जुबां पे चढ़ गयी ...और जगजीत सिंह जी की गायी यही ग़ज़ल तादिन सुनती रही ...शाम तक भी सरुर नही गया ..इसलिए इसे ही पोस्ट कर रही हूँ आज यहाँ ....
बाज़ीचा ए अत्फ़ाल हे दुनिया मेरे आगे
होता हे शब् ओ रोज़ तमाशा मेरे आगे
होता है निहाँ गर्द में सहरा मेरे होते,
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे
मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख के क्या रंग तेरा मेरे आगे
इमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र,
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे.
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है,
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे
इक खेल है औरंग-ए-सुलेमाँ मेरे नज़दीक,
इक बात है एजाज़-ए-मसीहा मेरे आगे.
जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर,
जुज़ वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया मेरे आगे.
सच कहते हो ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा हूँ न क्योँ हूँ,
बैठा है बुत-ए-आईना सीमा मेरे आगे.
फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मेरे आगे.
नफ़्रत क गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क से गुज़रा,
क्योँ कर कहूँ लो नाम ना उस का मेरे आगे.
आशिक़ हूँ पे माशूक़फ़रेबी है मेरा काम,
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे.
ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते,
आई शब-ए-हिजराँ की तमन्ना मेरे आगे.
है मौजज़न इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ काश! यही हो,
आता है अभी देखिये क्या-क्या मेरे आगे.
हमपेशा-ओ-हममशरब-ओ-हमराज़ है मेरा,
‘गा़लिब’ को बुरा क्योँ कहो अच्छा मेरे आगे.
9 टिप्पणियां:
बहुत ही खुबसुरती से आपने अपने दिल की बात कही....बेहतरीन शैली और अनुठा अंदाज.....लाजवाब...बधाई इस सुंदर रचना के लिए।
सुकून मिला आपके ये बेहतरीन अलफ़ाज़ पढ़ कर.
ਕੈਸੇ ਕਹ ਦੂੰ ਬਾਦਲੋਂ ਕੋ ਕਿ ਬਰਸਾ ਨ ਕਰੇਂ
ਵੋ ਯਾਦੋਂ ਕੀ ਕਬਰੇੰ ਸਾਥ ਲਿਏ ਫਿਰਤੇ ਹੈਂ .
....................... ਏਕ ਬਾਰ ਫਿਰ ਬੇਹਤਰੀਨ ਨਜ਼ਮ
बहुत खूबसूरत पेशकश
ग़ालिब की बढ़िया ग़ज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया.
सलाम.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
चचा की गजल का सुंदर चित्रों के साथ शानदार प्रस्तुकरण कि्या है।
आभार
बहुत खुबसूरत.....आपकी तस्वीरों के चयन के लिए मेरा...सलाम |
कभी फुर्सत मिले तो यहाँ आईएगा......
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
यह ग़ज़ल मुझे भी बहुत पसंद है. जिस तरह आपने इसे चित्रों से सजाया है मन को भा गया.
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