तौक़ीर ओ ऐतबार ओ इस्मत हो या हो 'माँ का प्यार'
ये वो दौलत है , जो फिर ना मिले उम्र भर कमाने से
ए दिल चल के ढूंढें नया और कोई ज़ख़्म ज़माने में
उकताहट सी हो गयी है मुझे अब इक ही फ़साने से
अब तो वो याद भी नही के जलाए दिल ओ जाँ मेरी
फितरती दर्द ही रह-रह के आना चाहता है बहाने से
सुना है कुछ ख़ास तू भी नही नाम - ए - आमाल में
होता गर , तुझे फुर्सत मिलती कभी मुझे सताने से
तजस्सुम-ओ -कारगाहे हस्ती में यूँ फंसी है 'ज़ोया'
कई दिनों से वक़्त ही नही शिकायत का ज़माने से !
जोया ***
तौक़ीर ओ ऐतबार - Honor ,Respect and Trust
नाम - ए - आमाल - Record of Work,Conduct
तजस्सुम -Research ,Search
कारगाहे हस्ती -वworkplace of Life
सुभानाल्लाह.......ये अद्पकी नहीं पूरी पकी ग़ज़ल अहि और इस शेर ने तो दिल जीत लिया -
जवाब देंहटाएंअब तो वो याद भी नही के जलाए दिल ओ जाँ मेरी
फितरती दर्द ही रह-रह के आना चाहता है बहाने से
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
जवाब देंहटाएंकाम से थोड़ा वक्त निकाल यहाँ भी दीदार करा दिया कीजिये ..बहुत दिनों में आना हुआ आज ..
ए दिल चल के ढूंढें नया और कोई ज़ख़्म ज़माने में
जवाब देंहटाएंउकताहट सी हो गयी है मुझे अब इक ही फ़साने से
बहुत सुन्दर गज़ल्।
तजस्सुम-ओ -कारगाहे हस्ती में यूँ फंसी है 'ज़ोया'
जवाब देंहटाएंकई दिनों से वक़्त ही नही शिकायत का ज़माने से !
....बहुत सुन्दर और भावमयी अभिव्यक्ति..
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंआपको हमारी ओर से
सादर बधाई ||
जोया ! ज़िंदगी ख़ूबसूरत है......इसके उतार-चढ़ाव एकरसता को भंग करते हैं .....उकताना तो तब होता है जब एकरसता बनी रहे . बहुत दिन बाद आयी हो...पर एक अच्छी रचना के साथ. आती रहो.......
जवाब देंहटाएंगधे की क्लास शुरू हो गयी हैं. दोपहर भोजन के समय एक बजे उससे बात कर सकती हो - +918765634518
जवाब देंहटाएंए दिल चल के ढूंढें नया और कोई ज़ख़्म ज़माने में
जवाब देंहटाएंउकताहट सी हो गयी है मुझे अब इक ही फ़साने से
kya khoob likha hai pahli baar aapko padh rahi hoon.i m impressed n following this lovely blog.god bless you.
तौक़ीर ओ ऐतबार ओ इस्मत हो या हो 'माँ का प्यार'
जवाब देंहटाएंये वो दौलत है , जो फिर ना मिले उम्र भर कमाने से
....बढ़िया शेर।
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
जवाब देंहटाएंतजस्सुम-ओ -कारगाहे हस्ती में यूँ फंसी है 'ज़ोया'
जवाब देंहटाएंकई दिनों से वक़्त ही नही शिकायत का ज़माने से !
बहुत उम्दा ख़याल....
सादर...
खुबसूरत ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंतजस्सुम-ओ -कारगाहे हस्ती में यूँ फंसी है 'ज़ोया'
जवाब देंहटाएंकई दिनों से वक़्त ही नही शिकायत का ज़माने से !
क्या बात है. बहुत सुंदर नज़्म.
बधाई.
कितने सुन्दर शब्दों का इस्तेमाल किया है :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत गज़ल बन गयी है :)
आपकी इस रचना को आज 4 अक्टूबर को मेरी धरोहर पर साँझा किया गया है
जवाब देंहटाएंhttps://4yashoda.blogspot.com/2019/10/venus.html
arey itni puraani post tak kaise pahunche
जवाब देंहटाएंbahut achha kiya aapne...mujhe khud yahan tak aaye saalon ho gye
yahaan tak pahunchne aur lekhan kp pdhane ke liye aabhaar
lekhan ko sthaan dene ke liye tah e dil se shukriya