याद है, ऐसे ही इक जाड़ों के दिनों में ,कहा था तुमने
जब भी होता है मौसम सर्द सा तुम बहुत याद आती हो
या ख़ुदा अबके आये जो दिसम्बर ,तो फिर खत्म न हो
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दिसम्बर सर्द रहता था तो कुछ तस्सली रहती थी दिल में
साल के आखिर में तो फुरक़त की तपिश से नज़ात पायेंगे
वक़्त के साथ साथ अनाओं सा दिसम्बर भी गर्माता गया
ज़ोया****
20 टिप्पणियां:
या ख़ुदा अबके आये जो दिसम्बर ,तो फिर खत्म न हो
वाह!
बहुत खूब लिखा है आपने।
सादर
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‘जो मेरा मन कहे’
bahut khoob ...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!चर्चा मंच में शामिल होकर चर्चा को समृध्द बनाएं....
बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति.....
कल शनिवार ... 03/12/2011को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बेहद खुबसूरत लिखा है |
बहुत खूब...
सादर..
khoobsurat ehsaas.
खूबसूरत ख़याल
apne bhavo ko khubsurat shabdo se sajaya hai apne....badhiya
उफ़ …………गज़ब के भाव्।
intzar me bhi pyar ki kashish badh jati hai.
दिसम्बर को आवाज़ देते हुए
मन में छिपे कई जज़्बात अंगड़ाई लेने लगे ...
काव्य में ऐसा कुछ है
जो बरबस ही अपनी जानिब खींचता है
वाह !!
subhanallah.
दिसंबर..वाह...
'लव इन दिसंबर'
बहुत कुछ याद आया :)
दोनों त्रिवेणियाँ वैसे जबरदस्त हैं...कातिलाना टाइप :)
खूबसूरत...बेहद खूबसूरत.
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mind blowing ....wahh
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