गुरुवार, मार्च 29, 2012

जाने वो क्या है...


इक ऐसी मंजिल
जिसका ना रास्ता मालुम है ना पता
मगर फिर भी इक कशिश सी है 
 के भागती फिरती हूँ

जाने वो क्या है जो लापता है
जिसका मैं पता ढूंढ़ती  हूँ...............

महफिलों में रहते हुए,
खुशबुओं में महकते हुए
हैरां परेशां सी रहती हूँ  
हर कहीं कोई निशां ढूंढ़ती हूँ  

जाने वो क्या राज़ है
जिसका मैं सुराग ढूंढ़ती हूँ..........

ना ग़म का साया कोई 
ना दर्द की परछाईं है 
फिर भी रहती है तबियत उदास 
और दिल में नमी सी रहती है 

जाने वो क्या कमी है 
जिसे मैं हर शैह में ढूंढ़ती हूँ ...........




                                                                                       :- ज़ोया****

2 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

एक खोज ....मन जाने क्या चाहता है ...!
खूबसूरत एहसास ...सुंदर रचना ...!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत नज़्म ...