गुरुवार, दिसंबर 06, 2012

किरचें





कांच की झीनी सी तार से जुड़ा था रिश्ता

ना आंच सह सका , ना ही ज़रा सा दबाव 


अब रह - रह के किरचें चुभती हैं जेहन में !


                                                                                                जोया ****

6 टिप्‍पणियां:

  1. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

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