सुनो
ज़रा इक पल भर को
आराम तो दो
सांस तो लो
इतनी तेज़ रफ्तार। उफ़्फ़
धुरी पे तेज़ तेज़
धुरी पे तेज़ तेज़
घूमते घूमते
कहीं यूँ न हो जाए
इस ज़मीन में कहीं
कोई सुरंग बन जाए
और मैं अपनी ही
मिटटी में खो जाऊं कहीं
सुनो ऐ ज़िंदगी
ज़रा इक पल भर को
आराम तो दो
सांस तो लो
पृथ्वी सी हूँ
पृथ्वी नही हूँ मैं
उसके पैरों तले तो
आसमान है
और मेरे पैरों तले
मेरे पैरों तले ज़मीन है.. मेरे घर की !
:-ज़ोया ****
Asteroids of thoughts
कविता ने मन को बाँध लिया .. क्या खूब लिखा है .. अंतिम पंक्तियों ने जादू कर दिया है ,,..
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंवाह ग़ज़ब सृजन,
जवाब देंहटाएंभावों को सुंदर अभिव्यक्ति ।
वाह बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंdr.zafar ji
जवाब देंहटाएंblog tak aane..rchnaa ko pdhne aur sraahne ke liye tah e dil se shukriyaa