जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
तुम्हे देख कर
ये जाना मैंने,
दुआओं का भी
रंग होता है!
'कान्हा' से 'कान्हा'
पाया है मैंने
हर पल 'वो' मेरे
संग होता है
आंसुओं से धुप
छानी है मैंने
ज़माना ये सारा
दंग होता है
:-ज़ोया
माखन गया
अफसर पटाने में
'कान्हा' हाय ! रूठे
इक तू साँचा
साँचा तेरा नाम
बाकि सब झूठे !
बस अब आओ
अपना लो मुझको
बेर हूँ जूठे !
:-ज़ोया
#ज़ोया, #कान्हा
10 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 23 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद
@Digvijay Agrawal ji
rchnaa ko is kaabil smjhne ke liye bahut aabhaar aapka
apko spriwaar janamashtmi ki shubhkaamnayen
बेहतरीन सृजन ।
बहुत सुंदर सृजन।
@Meena Bhardwaj ji
blog tak aane aur rchnaa ko pdne ke liye aabhaar
@मन की वीणा
:)
aabhaar
yuhin utsaah bdhaate rahiye
वाह! 'आंसुओं से धूप छानी है मैने....'! बहुत सुंदर!!!
अच्छा.... तभी मै कहूँ... ये दम क्यूँ घुटता रहता है इक अर्से से... सारी आक्सीजन (O2) तो यहां है।
विश्वमोहन ji
blog tak aane aur rchnaa ko sraahna ke liye bahut aabhar aapka
hmmmmmmm
:)
हमेशा खुश रहो
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