इस जलती धुप में पल में सारा आलम गुलाबी हो गया …घर में कदम रखते ही देखा .इक गुलाबी सा ख़त धुप को जला रहा था .! हाथ छुते ही .लपक के दिल से लग गया ..पहचान लिया किधर से आया है ये ! वही नदी सी बल खाती लिखावट ..और हर शब्द करीने से सजा के लिखा हुआ ! दिन भर की थकावट ने कहा ,'' पहले ..इक चुस्की बादामी चाय की दे दो मुझे …..फिर देख लेना इसे ..''
पर ख़त भी उनका उन जैसा उतावला .फट से गौद में आ गिरा ,,,,,,,जैसे कह रहा हो ….नहीं ....पहले "" मैं ""! ख़त खोलते ही ….वो ही खुशबू ..जो तुम्हारे बालों से आती है ! ना जाने कितनी रातें इसपे सो के गुजारी होंगीं तुमने !
न नाम मेरा .ना कोई दुआ ..न कोई सलाम ...
“”कैसी हो ””
फिर छोड़ दीं उस पन्ने की 2 -3 कतारें …तुम्हारी कश्मकश में ना जाने इन कतारों ने कितना अकेलापन सहा होगा ..हौंसला कर आगे लिखा होगा तुमने ………..
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आज जानती हो क्या हुआ ….बस कुछ लिखने के लिए कुछ ढूंढ़ रहा था के तुम्हारी पेंसिल हाथ आ गयी फिर जो लिखना था वो भूल गया ..! कभी बताया नही तुम्हे मैंने पर .. तुम्हारी इस पेंसिल से बहुत जलन थी मुझे ..पर आज इस से अज़ीज़ कुछ ना लगा ! याद है तुम कैसी लापरवाही से अपने खुले बालों को टेढ़े मेढ़े जुड़े का आकार दे दिया करती थी ….और इसी पेंसिल के सहारे टिका लेती ! मैं तो बस इसी इंतज़ार में रहता की तुम इसे बालों में अटकाओ ... और मैं ..निकालूं ! माथे पर कैसे बल डाल लेती थी तुम …. पर मेरी नज़र तो तुम्हारे बालों की तरफ होती ! उनका खुल के बिखरना ….और फिर तुम्हारी कमर से लिपट जाना ...जैसे रेशम की सुन्हेरी तारों का गुछा अचानक से खुले और तुम्हारी कमर पे अटक जाए !
और वो इक और आदत तुम्हारी …
पेंसिल को दांतों में दबाते रहना ..तुम्हारी सोच के साथ ..वो पेंसिल भी न जाने कितने रंग देखती रहती ..कभी होंठो पे अटक जाती .कभी पिसती थी दांतों में …कभी कर देती थी तुम इसी अपने होंठो से जुदा और माथे पर टिका देती !
मुझे यूँ घूरते देख ..पूछा था तुमने इक बार ..””क्या घूरते रहते हो ””
इक मुस्कराहट के सिवा मैं …..कहता भी क्या ?
क्या ये की मुझे अपनी पेंसिल बना ..लो मैं भी चूमूं , तुम्हारा माथा .कभी तय करूं सदियों का फासला तुम्हारे होंठो और तुम्हारे माथे के बीच .,कभी अटकुं तुम्हारे जुड़े में ..सौउं मैं भी रेशम की तारों में ...करूं ब्यान तुम्हारी सोच अपने खून से .. या रहूँ झूलता मैं तुम्हारी उँगलियों में !
हम्मम्मम्म !
अच्छा सुनो मेरी इक बात ही मान लो ..हर शाम मेरे साथ अपनी पेंसिल का सौदा कर लिया करो ..दिन भर रखो अपने पास …शाम को मेरी कलम से बदल लिया करो .इसी बहाने हर शाम मैं तुम्हे महसूस कर लिया करूंगा ...छु लिया करूंगा ! और मेरी कलम से थोडा सा मैं तुम तक पहुँच जाया करूंगा ………
जोया ****
12 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
बधाई स्वीकारें ।।
waah! bhaut-bhaut khubsurat ehsaaso ki abhivaykti...
ati sundar lekhani.....wah
कोमल सी भावनाओं से भरा खत
गद्य में पद्य ....पद्य में गद्य ...
स्मृति की शिला पर नाज़ुक भावनाओं की कार्विंग कर दी है तुमने । बेहतरीन ...
बहुत अच्छा लगा।
लापरवाह तो तुम हो ही :) अन्यथा मात्राओं की गलतियाँ न होतीं। एक बार लिखने के बाद दोबारा पढ़ने की ज़हमत नहीं उठातीं ....गन्दी बच्ची कहीं की !
वज़न कम करो अपना....
वाह मोहब्बत के नाज़ुक ख्यालों का सुन्दर चित्रण
्वाह मोहब्बत के नाज़ुक ख्यालों का सुन्दर चित्रण
aap sab ka bahut bahut shukriyaaaaaaaa...tah e dil se........
baba....thanxx..maine apni galtiyaan sudhaarne ki koshish ki hain..dekhen aur btaaye................aur aage bhi yun hi kaan khinch kr smjhaayen
:)
:) वाह..इतना खूबसूरत खत..हर कुछ महसूस कर सकता हूँ!! :)
beautiful.............
loved it!!!
anu
aap sab ka tah e dil se dhnyawaad....ehsaason ko smjhne aur sraahne ke liye
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