वो
दिन प्रतिदिन
दिन प्रतिदिन
मुझसे
यूँ दूर जाता जा रहा है
जैसे
साल का पहला दिन
हर आते नए दिन के साथ
दूर होता जाता है
और ,
यूँ दूर होते -होते
साल के आखिरी दिन
वो मुझसे
साल-भर दूर हो जायेगा
और ,
फिर यूँ होगा, कि
वो मुझे शायद
पिछले गए
साल के कलैंडर की तरह
भूल जायेगा !
ज़ोया***
21 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 30 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
yashoda Agrawal ji
बहुत बहुत आभार आपका। ....
मेरी रचना को स्थान देने के लिए। .युहीं उत्साह बढ़ाते रहें..
धन्यवाद
Wah... Ek aur behatreen alfazon me piroyi
Khubsurat rachna . Atyant Sundar ...,
वाह यथार्थ के पास का सृजन।
बहुत सुंदर है ज़ोया जी ।
Anita saini ji
उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद आपका.... रचना को स्थान के लिए बहुत बहुत आभार
युहीं साथ बनाएं रखें
Meena Bhardwaj ji
:)...
aapke utsaahvardhak shabd sun ke bahut prsnnta milti...
aabhaar
yuhin sath bnaayen rkhen
मन की वीणा ji
btah e dil se shukriyaa
blo tak aane aur rchna ko srhaane ke liye aabhaar
बहुत सुन्दर सृजन
सुंदर !
Sudha Singh~ ji
bloh tak aan..rchna ko pdhne aur sraahne ke liye tah e dil se shukriya
saadar aabhar
गगन शर्मा, कुछ अलग सा
rchna ko pdhne aur sraahne ke liye bahut bahut dhanywaad
saadar aabhar
अलविदा ए दोस्त जाने फिर कहाँ हो
जा रहे हो तुम न जाने कौन बस्ती किस शहर
चन्द डिब्बे और पटरियां है तो क्या
दूरियां इनमे हज़ारों मील की आई उभर
पोंछ डालो आंख के आंसू न देखो मुड़कर
याद की खामोशियाँ होंगी हमारी हमसफर ।
मेरे कुछ पंक्तियाँ आपकी सुंदर रचना के लिए ,बधाई हो
समय कहाँ ठहरता है किसी के लिए, निशान छोड़ता है वह तो
बहुत अच्छी रचना
kavita ji
hmmm....mujhe to ye lgtaa he.smay thehraa bhi nhi chaiye...kbhi kbhi bura smay bhi to aata he..agar wo theha gya o..ufff
blog tak aane..rchna ko sraahne ke liye aabhaar
Jyoti Singh ji
wow...rchnaaa ki sarthktaa hui...ik aur rchna utpnn hui
bahut bahut abhar
yuhin utsaah bdhaate rhe
दिल को छूते शब्दों के साथ ..बेहतरीन शब्द रचना ।
संजय भास्कर ji
aapko rchnaa psnd aayi tah e dil se shurkiya aapka
aapne hmeshaa utsaah bdhaya he meri rchnaao ko....bahut bahut aabhaar
yuhin sath bnaaye rkhen
बहुत खूब ...
सच है अक्सर कई दिन भूल जाते हैं पीछे जो रह जाते हैं ... पर जब लौट के आते हैं तो यादें ताज़ा कर जाते हैं ...
ज़िन्दगी शायद लौटाती है ... यादों को भी ...
दिगंबर नासवा ji
hmmmm....
kbhi kbhi to sochti hun..aag bdhne ki kitnii kimat chukaate hain ha roz
blog tak ane aur rchna ko srhaane ke liye bahut bahut aabhaar aapkaa
Bhari rehti hai andar se, kalam munh band rakhti hai... Magar sab bol deti hai wo, jab kagaz ko chakti hai...
hmmmmm
:)
हमेशा खुश रहो फूलो फलो :)
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