बुधवार, अगस्त 11, 2010
ये भी शुक्र है
ये भी शुक्र है हर रात के बाद सुबह आ जाती है
तपते दिल पे मानसून की ठंडी फुहार पड़ जाती है
रातभर जलते हैं कलम के तले तेरे ख्याल में लफ्ज़
सुबहा आ, बेचारे लफ़्ज़ों की कालिख मिटा जाती है
हर पहर के साथ हर इक लफ्ज़ झुलसता रहता है
सुलगते सफों से रोज़ इक नई किताब बन जाती है
हैफ ! उमस बन रिसता है कलम से दिल का गुबार
उठती उमस से किताब की सियाही पिघल जाती है
बरसने लगती हैं रिमझिम- रिमझिम बूंदे नमक की
गीली हवा भीगी किताब की उमस उड़ा ले जाती है
किताबो -ओ- लफ्ज़-ओ- सयाही की फेर में अक्सर
दिन चढ़ आता है और ये रात युहीं गुज़र जाती है
रोज़ की तरहा , दिन भर तेरे ख्याल पनपते रहेंगे
ये भी शुक्र है हर सुबहा मेरी किताब नई हो जाती है
..................तपते दिल पे मानसून की ठंडी फुहार पड़ जाती है !
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3 टिप्पणियां:
बेह्तरीन ...
beautiful....bhout khoob
@Rakesh jiii
@Ebtedaa........
aap dono ka tah e dil se shurkiya
take care
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