शुक्रवार, अगस्त 13, 2010

मोरपंख देखा है .......गौर से
























मोरपंख देखा है .......गौर से

है कई रंगों को खुद में समाये

हलके-२ रंगों से हो गहरे गहरे

रंगों में रंगा होता है खुद में

फिर भी इक सुंदर कैनवास सा

हर रंग करीने से रखा हुआ....

.....पर हाथ लगाओ तो जानो

इक पूरी तस्वीर सा नही होता

छोटी- 2 बारीक कोशिकाओं का

इक बातरतीब केनवास होता है

पर वो महीन सी जुडी होती हैं

इक सुबुक पर मज़बूत तनी से

सब अलग-२, बिखरी -२ सीँ

मगर फिर भी इकसार इकसाथ

जुडी होती हैं इक तख्मील के लिए

ताकि मोरपंख को तकमील मिले

........

मैं भी मू-बा-मू ऐसी ही तो हूं

क्यूँ मैं इतनी बिखरी-२ सी हूं

क्यूँ कई रंग झलकते हैं मुझमे

फिर भी जुडी हूं कहीं न कहीं

इक सुबुक ... मज़बूत तनी से

बिखरी हूं हर मोड़.,हर पल में

फिर भी आहंग है मुझमे कोई

होती है मुझमे वेकराँ ख्यालो की

तखमील .....हर घडी हर वक

और मिलती है तकमील मुझीमे

मुझे .....और ...मेरी खुदी को

.....
मोरपंख देखा है मैंने गौर से
और देखा है मैंने खुद को भी
हाँ! मैं मू-बा-मू ऐसी ही तो हूं !!

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bahut khoob......apne dil ke jajbaatkahne ke liye jo alfaaz aapne liye hain...kaabile tareef hain..
umda tahreer...

venus**** ने कहा…

oooooooooo KK ji;.........bahut bahut shurkiyaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa