रात दिन टेलीविजन पर बार बार खबर आती रही
वो मरा , ये मरा , वो पकरा , वो जला, ये जला
लग रहा था कितनी शिद्दत से खबर पे नजर रखी है
इक इक द्रिश्य बार-२,अलग-२ कोण से दिखाया गया
सुनने में आया कई गैर सरकारी संघ भी आ जुटे
देखा के सब हाथ से हाथ मिला के खडे हो गये हैं
हर तरफ इक यही बात, यही शोर, यही जोश
सारा देश मानो इक घर की तरह उमड़ पड़ा हो
अगले 1 हफ्ते तक खबर गरमाई रही,सुलगी रही
नेताओं ने भी खूब भाषण दिए ,सितारे भी छाए रहे
अगले हफ्ते में खबर सिर्फ टेलीविज़न पे परोसी गयी
नेताओं को भी कई और काम याद आ गये शायद
सितारे भी अलग आसमान में झिलमिलाने लगे शायद
सुनने में आया की वो शहर फिर से उठ खड़ा हुआ है
रास्ते फिर से उसी रफ्तार से दौड़ने लग पड़े हैं
महफिले सज रही हैं,जिंदगी फिर हंसने लग पड़ी है
जुबां - जुबां पे इक ही बात है ये शहर बड़ा दिलेर है
इस दिलेर शहर की रगों में खून बड़ा गरम है ,
जलने वालों के घाव सर्दी में पड़े पड़े ठंडे हो गये हैं
मरने वालों की चिताएं सर्द आहों से बुझ गयी हैं
झुलसती दीवारों पर रंग-रोगन ने धब्बे छुपा दिए हैं
बारूद की गूँज डीजे की कानफाडू संगीत में गुम है
खून के धब्बे सरपट सड़कों पे कदमो से मिट गये हैं
कोन मरा,कोन जला कुछ अपनों को ही याद है बस
उनके रिश्तेदार भी उलझे पडे हैं अलग-२ उलझनों में
कुछ शिनाकात की कतारों में, कुछ इनाम की कतारों में,
आम जनता भी अपने -2 धर्मसंकटों में उलझी पड़ी है
और आज टेलीविजन पर फिर इक और नई खबर है
हर द्रिश्य बार-२, अलग-२ कोण से दिखाया जा रहा है
नयूज चैनल ने बडी ही शिद्दत से खबर पे नजर रखी है
ये खबर भी हफ्ते तक खूब गरम रहेगी,सुलगती रहेगी
पहले मातम और फिर यूहीं ही महफिलें सजती रहेंगी
सड़कें यूहीं हर बार बदरंग हो - हो फिर सवरती रहेंगी
हम यूहीं बार- बार गिरेंगे , उठेंगे , उठ के चलते रहेंगे
दिलेरी , बहादुरी ,आशावादी चेतना , जीवन उपासना
बेशर्मी , ढीटपना , बेपीरापन , गैर- जिम्मेंदारानापन
इन के मिश्रित स्वादिष्ट वयंजन हम सब खाते रहेंगे
रात दिन टेलीविजन पर ख़बरों के पुलेंदे आते रहेंगे
कुछ मरते , कुछ जलते और हम युहीं देखते रहेंगे
हम यूहीं बार- बार गिरेंगे , उठेंगे , उठ के चलते रहेंगे
3 टिप्पणियां:
Kuch alag kuch hatke..kuch naya..
.
Behtreen!!
very good .... really
very wel written .... really good:)
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