मंगलवार, सितंबर 07, 2010

सब वक़्त का फेर है



ये ज़ज्बात,ये एहसास,ये ख्वावो-ख्याल
तीनो के तीनो वक़्त के मूरीद हैं  
भरपूर वक़्त मिले खाने पीने को
तो तीनो खूब फलने फूलने लगते हैं
वक़्त का निवाला तोड़ तोड़ के
खूब सेहत बना लेते हैं ये  
कलम भी तब अपनी पे आ जाती है
तीनो की संगत में बैठ
सुर्ख रंग में रंग जाती है
तीन से ये चार हो कर
फिर खूब दावत उड़ाते हैं
दिल के दर्द को नोच नोच के
बाहर ला-ला नोश फरमाते हैं
इसी बहाने दर्द कम भी हो जाते हैं

सब वक़्त का फेर है

अगर इसी वक़्त की किल्लत हो जाए
तो ये तीनो भूखे की मार से पस्त
चुपचाप दिल ओ दिमाग में
लघु निंद्रा में सोये पड़े रहें
कलम भी मेज़ की दराज़ में
उंघती रहेगी,बेचारी करे भी क्या
रोज़गार के चक्कर ,घर के किस्से
इनमे उलझ जाओ तो
सारा वक़्त यही खा जाएँ
बेचारे तीनो फाके ही रहेगे
सब वक़्त का फेर है !


3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

इनमे उलझ जाओ तो
सारा वक़्त यही खा जाएँ
बेचारे तीनो फाके ही रहेगे
सब वक़्त का फेर है !

बढिया !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ........माफी चाहता हूँ..

Pallavi saxena ने कहा…

waha!!! kya baat hai....lagata hai waqt se chont kahi hai aap ne ...magar mera mananaa yh hai ki waqt kabhi nahi badalata..sirf guzarta hai...agar kuch badalta hai tho wo hai Insaan ....