बुधवार, सितंबर 08, 2010

किताबों में संजोयें गुलाबी फूल आज भी है....


  
ये माना मेरी जान कोई रिशता बाकी नही हममे
पर दिल से दिल के दर्द का रिश्ता आज भी है

खिंजा ने उजाड़ दिए मेरे भरे गुलशन के फूल सारे
मेरी किताबों में संजोयें तेरे गुलाबी फूल आज भी है

तुझसे होकर आती हुई हवा अक्सर पूछती है मुझसे
क्या मेरे लिए निखत ए जुल्फ ए निगार आज भी है

वो जो मुद्दा ए मोड़ है हमारे अलग अलग रास्तों का
ग़म अपनी जगह,मगर वो फ़िक्र ओ नज़र आज भी है

वाही तबाही असूलों में उलझ गयी थी मैं गलत शायद
अफ़सोस ज़दाह कल भी थी और मलाल आज भी है

वक़्त के मरहम से बरसातें थमने लग पड़ी हैं अब तो
तेरा तस्वुर , तेरा ख्याल मेरे अब्र ए बहारां आज भी है

मुद्दत हुई  ''ज़ोया''  देखा ही नही तुझे  जान -ए- तम्मना
दिल के संगेमरमर पर उकरा तेरा नक्श हुबहू आज भी है



*निखत ए जुल्फ ए निगार - zulaf kii khusboo
*फ़िक्र ओ नज़र -- Point Of View
*वाही तबाही -- Meaningless
अफ़सोस ज़दाह -- sorry
*अब्र ए बहारां -- cloud of springs



6 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

सुन्दर

Udan Tashtari ने कहा…

वक़्त के मरहम से बरसातें थमने लग पड़ी हैं अब तो
तेरा तस्वुर , तेरा ख्याल मेरे अब्र ए बहारां आज भी है


-बहुत उम्दा!!

Rakesh ने कहा…

बेहतरीन..... बेहतरीन ..... बेहतरीन......!!!!!

लाजवाब ..... आप की अब तक की जितनी रचनाएँ पढी हैं उनमें सबसे बेहतरीन.

सुखद आश्चर्य..... की ये आपने लिखी है. [:)]

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

aap sab ka tah e dil se shurkiyaa
take care

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

Pallavi saxena ने कहा…

bahut khoob kaffi shayraana mijaz jaan padta hai mohtarmaa aap ka ....aur aapki shayri se zalakta hai ke ishq ne kabhi aap ka daaman bhi mahakaya hai jiski khushbu aur tabir aap ki likhavat se zalakti hai...