जिंदगी इस कदर भाग रही है मानो
रेल पटरी पर तेज़ी से भाग रही हो
और दूर-दूर तक निगाह के दायरे में
कोई एक स्टेशन तक नही आ रहा है
सब कुछ इतनी तेजी से बीत रहा है
जैसे ..कभी भी कुछ रुकता ही न हो
रेल भी वही है ...........पटरी भी वही
जाने अबके ...............कौन सा इंधन
खुदा जाने...............डला है इंजन में
..........ना कागज़ हाथ में टिकता है
न कलम कागज़ पे टिकती है.........
..............और तो और ....................
.................ये कम्बखत दिल भी अब
किसी एक ख्याल पे नही टिकता.....
अब ..........इस रफ़्तार में .........भला
कोई ....................क्या नज़्म लिखे !
.
3 टिप्पणियां:
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
वाह बहुत खूब,
कभी ढाल ,कभी चढ़ाई,
कभी सुस्त कभी तेज़ ,
जीवन में लगा रहता है .....
अच्छी नज़्म.........बधाई !
संजय भास्कर ji..and ' मिसिर ji...aap dono ka taah e dil se shurkiyaa....hounsla afzaayi ke liye...aabhaari hun...take care
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