सोमवार, जनवरी 03, 2011

पलाश के फूल -3





झड़ जायेंगे दिसम्बर की ठिठुरन से
कुम्हलायी आस  के  निस्तेजित  फूल  सारे
नववर्ष में नूतन स्वप्न सजाना तुम
पलाश के फूल बन खिल जाना तुम

सांझ पसरी रहती है मेरे प्रांगण में
लिपा  है अँधेरा घर के  कोने-कोने में
वन की लाट सा प्रदीप्त हो जाना तुम
पलाश के फूल बन खिल जाना तुम

निस्तेजना छायी है मेरे श्वेतवर्ण पे
तुम आओ तो प्राण पड़े शिराओं में
 लालिमा टेसू सी आ चढ़ा जाना तुम
पलाश के फूल बन खिल जाना तुम 



तुषार  पड़ा है मृग तृष्णाओं  का देखो 
अलाव जलादो  तुष्टि का शीत ऋतु में
स्नेही किंशुक जीवनाग्निहोत्र  में जलाना  तुम
पलाश के फूल बन खिल जाना तुम !




वन की लाट -(पलाश is alos known as Flame of Forest)
प्रदिप्त हो जाना - to be Flame
शवेतवर्ण -white complexion
शिराओं- blood vessesls
 टेसू - पलाश का एक और नाम
तुषार-Pala ,Blight
 मृगतृष्णा-mirage
अलाव -bonfire
किंशुक-पलाश का एक और नाम
 जीवानाग्निहोत्र  - जीवन का अग्निहोत्र 
तृष्टि-satisfaction




   

13 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

तुषार पड़ा है मृगतृष्णाओं का देखो अलाव जलादो तृष्टि का शीत ऋतु में स्नेही किंशुक जीवानाग्निहोत्र में जलाना तुम पलाश के फूल बन खिल जाना तुम !

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति -
सुंदर सोच और सुंदर लेखन -
शुभकामनाएं .

M VERMA ने कहा…

निस्तेजना छायी है मेरे शवेतवर्ण पे
तुम आओ तो प्राण पड़े
सुन्दर रचना - प्रकृति के उपालम्भ और सुन्दर बिम्ब

abhi ने कहा…

पलाश के फूल सा ही खिल गयी है आपकी ये कविता...:)

Kunwar Kusumesh ने कहा…

वाह वाह . बहुत सुन्दर

vandana gupta ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना …………बढिया बिम्ब प्रयोग्।

निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर भावनायें,सुन्दर सोच और सुन्दर बिम्ब। बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई। आपको भी नया साल मुबारक हो।

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

दिल की धड़कनों को हूबहू कविता में उतार दिया है आपने। पलाश शब्द पढ़ते ही कविता के मनोभाव हंसते-खिलखिलाते गुंजन करत् सहज ही अनुभव किए जा सकते हैं। नव वर्ष पर एक सुंदर रचना और नव वर्ष 2011 की आपको ढेरों शुभकामनाएँ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सांझ पसरी रहती है मेरे प्रांगण में
लिपा है अँधेरा घर के कोने-कोने में
वन की लाट सा प्रदिप्त हो जाना तुम
पलाश के फूल बन खिल जाना तुम
khushboo hai...

वाणी गीत ने कहा…

तुम आओ तो प्राण पड़े शिराओं में ...
पलाश के रक्ताभ पुष्प जैसी ही रौशन कविता!

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

बहुत ही सुंदर...मै तो दिवाना हो गया हूँ अब इन पलाश के फूलों का....

प्यार का पहला एहसास.......(तुम्हारे जाने के बाद)

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

दीदी जी ! जीवनाग्निहोत्र दिख नहीं रहा है आपने क्या गड़-बड़ कर दी है ?......स्पष्ट कर दीजिये न जोया दीदी !
पलाश के फूलों नें मुझे भी सदा ही आकर्षित किया है......बहुत पहले एक कविता लिखी थी .......कभी पोस्ट करूंगा.

अरुण अवध ने कहा…

वाह, सुन्दर अभिव्यक्ति !
लहू पलाश के रंग घोलती सी रचना !
बहुत सुन्दर !

संजय भास्‍कर ने कहा…

दीदी जी
नमस्कार !
सुन्दर भावनायें,सुन्दर सोच और सुन्दर बिम्ब। बहुत अच्छी लगी रचना।