शनिवार, जनवरी 08, 2011

वो


मैं  उसे रोज़ देखती
और शायद वो मुझे
इधर उधर रस्ते पे भटकती वो
गाड़ियों के चक्कर पे चक्कर लगाती
पर कभी कुछ कहती नहीं  ना मांगती
बस खड़ी  रहती जैसे इक मज़बूरी हो
और आज भी रोज़ की तरह
मैं और वो
इक दूजे को देख रही थीं
ट्रैफिक सिग्नल पे
धूल से सने उसके बाल
जाने कितने रास्तों का पता बतलाते  
चंद चिथड़े मुश्किल से उसका तन
 ढकने की कोशिश में लगे थे
घुटनों से नंगी टांगों को अनगनित नज़रे
चिपक के ढांप रहीं थीं
सांवली सी रंगत पे उसकी 
वक़्त ने और भी कालिख चढ़ा दी थी
काँधे पे एक फटी सी चुन्नी
उसका  सीना छुपाने की
इक मजबूर सी कोशिश कर रही थी
हवा में बिना मकसद के उड़ते
इक कागज़ की तरहा उसकी आँखें
मुझे उस से बांधे जाती  
बड़े गौर से देख रही थी मैं उसे
शायद यही देख मुझ तक आने लगी
सकूटरओं ..मोटरसाइकलों से हो
बेहयाई से घूरती नजरों से निकल 
मुझ तक आने की कोशिश कर रही थी
और तभी
बड़ी सभ्य सी दिखने वाली इक महिला बोली ,
"..अग्गे जा .यहाँ से ...हूं
देखो तो बेहया ने कैसे कपड़े  पहने हैं
इन ओरतों  को जरा शर्म नही
जिस्म दिखा दिखा के पैसे मांगती है "
वो अब भी उतनी ही खामोश थी
उसने मुझे चुराई हुई नज़र से देखा
 फिर आस पास की व्यंगात्मक नजरों को
फिर ना जाने क्या सोच
 वापिस चली गयी ...वो
 .............
अपनी अलमारी में कपड़ों  के ढेर को देख के
मैं आज बड़ी खामोश सी हूं
.

.

12 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

बेहद मर्मांतक्।

M VERMA ने कहा…

अत्यंत प्रभावशाली
शायद बेबसी की दास्तान है ये

संजय भास्‍कर ने कहा…

दर्द और संवेदना...
सरल और गहरी कविता..
अच्छी लगी..

आभार

संजय भास्‍कर ने कहा…

भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ... आप इतना अच्छा लिखती है.. की पढ़कर मैं भी भावों की दुनिया में खो जाता हूँ .... आभार

The Serious Comedy Show. ने कहा…

कहीं शौक से उरवा हैं लोग कहीँ मजबूरी है,फर्क करने को संवेदना चाहिए जो खोती जा रही है.

झकझोर दिया आपने.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

अपनी अलमारी में कपड़ों के ढेर को देख के
मैं आज बड़ी खामोश सी हूं

आखीर की दो लाइनों ने कविता के end को बहुत मार्मिक बना दिया है. मन बोझिल हो गया.

Dr Xitija Singh ने कहा…

waah bahut khoob zoya ... kamaal ka likha hai ..

आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

अरुण अवध ने कहा…

एक दृश्य जो हमारे आस-पास बिखरे तमाम दृश्यों में से एक है ,
सभ्य समाज की फटन से झांकते हुए ये चहरे !
इन्हें अनदेखा करें भी तो कैसे ?
मन को छूती रचना ! प्रभावशाली ,सराहनीय !

बेनामी ने कहा…

आज आखिर मैंने फिर से आपका ब्लॉग ढूंढ ही लिया ......बहुत खूब....शारदार पोस्ट है आपकी.....पहले से अब आप बहुत अच्छा लिख रही हैं........मेरी शुभकामनायें|

बेनामी ने कहा…

आज आखिर मैंने फिर से आपका ब्लॉग ढूंढ ही लिया ......बहुत खूब....शारदार पोस्ट है आपकी.....पहले से अब आप बहुत अच्छा लिख रही हैं........मेरी शुभकामनायें|

Creative Manch ने कहा…

आपकी इस रचना ने गहराई से मन को छू लिया
बेहद ह्रदयस्पर्शी

आभार
शुभ कामनाएं

Unknown ने कहा…

मार्मिकता का चरम है शायद..... जहाँ बेबसी भी साथ में संलग्न है....
आखिर मानसिकता है ही ऐसी इंसानी.....
touching deep within heart.....