शुक्रवार, जनवरी 28, 2011

मेरे तुम्हारे सिवा ............!



((आज के इस आधुकिन युग में कास्ट सिस्टम अभी भी चला आ रहा है ,जिसके चलते लड़का लड़की अपनी पंसद ,समझ और प्यार के आधार पे नही अपितु कास्ट के मुताबिक़ ही शादी करने के लिए विवश किये जाते हैं..या कुछ अपने माँ बाप की साख और इज्ज़त रखने के लिए अपनी जिंदगी में समझोता कर लेते हैं.....{{ हाँ..शादी विवाह सोच समझ और देख भाल के ही करने  चाहिए ...मगर सिर्फ कास्ट के आधार पे इक रिशता तोड़ देना......????..
ना ये दो इंसानों के दिल को चोट पहुंचाता  है ...पर कभी कभी ये आगे चल कर भी गलत ही साबित होता है....बस इसी आधार पे इक छोटी सी रचना ....))


तुम क्यूँ चले गये
क्यूँ नहीं लड़े मुझसे
क्यूँ नहीं झगड़े  मुझसे
क्यूँ आंसू पी गये सारे
क्यूँ मान ली मेरी बात
क्यूँ मजबूर नहीं किया मुझे
क्यूँ दबाव नहीं डाला मुझपर
क्यूँ मेरे फैसले में साथ दे दिया
क्यूँ चुपचाप सर झुका दिया मेरे आगे

क्यूँ नहीं कहा "साथ हमे रहना है सब को नहीं "
क्यूँ नहीं कहा "जिंदगी सब ने नहीं हमने जीनी है"
क्यूँ नहीं कहा"सबकी ख़ुशी नहीं हमारी ख़ुशी देखो"
क्यूँ नहीं कहा"नहीं हम सब के लिए जुदा नहीं होंगे


क्यूँ ....क्यूँ .....आखिर क्यूँ !

आज देखो सब खुश हैं

बस इक

मेरे  तुम्हारे सिवा  ............!
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16 टिप्‍पणियां:

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

झांसी की रानी ! हम आपसे सहमत हैं ....मगर ये तेवर तब खामोश क्यूं थे ? ......हमें अफ़सोस है ......बच्चे ही नहीं .....बड़े भी गलती करते हैं ....मगर अब तो मानना ही पड़ेगा न ! कान्हा का हुकुम....और कान्हा कहते हैं ....यही नियत थी तुम्हारी ....स्वीकार कर लो इसे.

पद्म सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...

vandana gupta ने कहा…

आज देखो सब खुश हैं

बस इक

मेरे तुम्हारे सिवा ............!
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इस ज्वलंत समस्या पर सुन्दर भाव्।

बेनामी ने कहा…

वाह जोया जी,

सुभानाल्लाह....बहुत खूबसूरती से आपने इन जज्बात्तों को बयां किया है......दुनिया में बहुत से सवाल क्यूँ पर आकर ख़त्म हो जाते हैं .....आखिर क्यूँ?

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi dil ke kareeb ki rachna

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत आक्रोशपूर्ण प्रस्तुति..बहुत मर्मस्पर्शी

Kunwar Kusumesh ने कहा…

पूरी कविता किसी को खोने के दर्द से कराहती-सी लगी.
अभिव्यक्ति और सम्प्रेषण बेहतरीन है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

निर्मला कपिला ने कहा…

कब तक सब गल्तियाँ करते रहेंगे आखिर कब तक। सुन्दर एहसास। शुभकामनायें।

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

इस क्यों का कोई जवाब नही ......बहुत बार हम इस क्यों में ही उलझ कर रह जाते है ....

आज देखो सब खुश हैं

बस इक

मेरे तुम्हारे सिवा ............!


खूबसूरत अभिव्यक्ति .....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

सत्य, सत्य, वाह ! मन झूम गया। एक मनभावन रचना के लिए बधाई। कई बार पढ़ा मैंने और हर बार लगा जैसे पहली बार पढ़ रहा हूं।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

aaaaap sab kaa tah e dil se shurkiya.yahaan tak aane..is post pr rukne...smjhnee.aur rchnaa ka marm bhaw...smjhne keliye...bahut bahut shukriya

take care

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

रिश्तों पर पड़ने वाले समाज के प्रभाव को अच्छी तरह लिखा है आपने ..पसंद आई यह रचना

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सुन्‍दर भावमय, मर्मस्पर्शी शब्‍द ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ... शुभकामनायें।