शनिवार, फ़रवरी 26, 2011

लम्बा चौड़ा हिसाब



दिन भर जिस्म की चक्की चली

फिर गहराई लम्बी काली रात

सरहाने रख चली गयी

कुछ टूटे-फूटे ख्वाब

कुछ गीलापन कुछ चमक सुनहरी सी

इन आँखों के आस -पास

पलकों के किनारों पे रख गयी

 भारी भरकम  हिज्र के पल दो चार

वहीँ पास ही पढ़ी थी

मुठ्ठी भर तकरार

कौन जोड़े ,  कौन घटाए

ये लम्बा चौड़ा हिसाब

सौतेली माँ सी मुई घड़ी

चिल्ला चिल्ला मचाये बवाल

सच्ची भी है  बेचारी

दिन भर चक्की चलानी है

रोज़गार का है  बड़ा कठिन  सवाल !

20 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कम्माल का लिखती हैं आप भी.
सच में बेहतरीन!

विशाल ने कहा…

मेरी नज़र में यह आपकी की अब तक की सब से बढ़िया रचना है.
आपकी नज़्म के लिए कुछ लिखना शब्दों से युद्ध करने जैसा है.
आपकी कलम को ढेरों सलाम.

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

bahut bahut shukriya

राजेश उत्‍साही ने कहा…

हिसाब बिलकुल सही है।

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय ज़ोया जी
नमस्कार !
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ।
आपकी कलम को सलाम

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेशक बहुत सुन्दर लिखा और सचित्र रचना ने उसको और खूबसूरत बना दिया है.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

ਏਕ ਆਮ ਆਦਮੀ ਕੀ ਜਿੰਦਗੀ ਕਾ ਬਖੂਬੀ ਹਿਸਾਬ ਕਿਯਾ ਹੈ .........ਚਿਤ੍ਰ ਕਹਾਂ-ਕਹਾਂ ਸੇ ਖੋਜ ਕੇ ਲੈ ਆਤੀ ਹੋ ? ਤੁਮਹਾਰੇ ਬਿਮ੍ਬ ਬਿਲਕੁਲ ਅਨੋਖੇ ਰਹਤੇ ਹੈਂ ......ਸੁਬਹ-ਸੁਬਹ ਤੁਮ੍ਹੇੰ rਮੇਰਾ ਧੇਰੋੰ ਆਸ਼ੀਰਵਾਦ !

निर्मला कपिला ने कहा…

वाजिब सवाल । अच्छी रचना के लिये बधाई।

vandana gupta ने कहा…

सच कहा कौन रखे हिसाब्…………ज़िन्दगी की आपाधापी का…………बेहद सुन्दर चित्रण्।

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Rahul Singh ने कहा…

चलती चक्‍की देख कर दिया कबीरा रोय.

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

aap sab ka tah e dilllllll se shukriyaaaaa
hounslaa afzaai aur sath yuhin bnaaye rrkhen

Kailash Sharma ने कहा…

लाज़वाब! बहुत सुन्दर..

अरुण अवध ने कहा…

अच्छी कविता ,वीनस जी !
सबके दर्द से को ज़बान दी आपने !

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति!!

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सौतेली माँ सी मुई घड़ी

चिल्ला चिल्ला मचाये बवाल

सच्ची भी है बेचारी

दिन भर चक्की चलानी है

रोज़गार का है बड़ा कठिन सवाल !

बड़े नए नये बिम्ब आपने प्रयोग किये हैं.बहुत बढ़िया.

Mohinder56 ने कहा…

प्यार टकरार जमा घटा.... यही तो जीवन की पूंजी है जो यादों में समा कर अकेलेपन को फ़िर से हराभरा कर देती हैं.

Khare A ने कहा…

badi sundarta se apane apni bat kahi

Unknown ने कहा…

This is a poem.. But end line gives a feel of 'Triveni'. Hey!.. u r a hardcore poet huh.. Hmm Nice style.

बेनामी ने कहा…

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