गुरुवार, अप्रैल 21, 2011

दोपहर से शाम हो आई




वो बड़ी देर तक उस तरफ निहारती रही 
वो थके बोझिल से क़दमों से
चले जा रहा था ...कभी रुकता मुड़ता
दो पल फिर ठहरता...जाने क्या सोचता
शायद ....वो उसे वापिस बुला लेगी
 कुछ देर ठहरने के बाद फिर चल पड़ता
फिर आगे बढ़ जाता फिर रुकता
फिर मुड़ता फिर सोचता और फिर चल पड़ता
और ये सिलसिला तब तक चला
जब तक के मोड़ ने करवट नही खायी
मुड़ने से पहले वो फिर रुका ,मुड़ा
पर इस बार दो पल के लिए नही
बड़ी देर तक ...और निहारने लगा उसे  
और वो
चेहरा भावशून्य...कठोरता से कसी आँखें   
खड़ी रही ..ज्यूँ जड़ हो   .पत्थर हो

लोगों और गाड़ियों से भरी सड़क के किनारे 
 इक  निर्वात बन गया  
 ज्यूँ समय कुछ पल को  जम गया हो 

और अचानक इक तेज़ आती गाडी के होर्न ने 
 दोनों की सान्द्रता तोड़ी 
दोनों ने इक नजर भरपूर  देखा इकदूजे को
वो आँखों से ज्यूँ सवाल कर  रहा हो
पर जमी खाली आँखों से निरुत्तर हो
वो ....वो मोड़ मुड गया !
 .
दोपहर से शाम हो आई
वो अभी भी वहीँ है
पर अब
चेहरा दोपहर से बिलकुल अलग है
 वेदना पसरी है और आँखों में सैलाब
ताश के पत्तों का मकान ज्यूँ गिरे
यूँ ढही बैठी है !
वो अभी भी उस तरफ निहारे जा रही है  !

.
                      जोया**** 


.**************
निर्वात--- Vacuum
सान्द्रता -- Concentration
वेदना --- pain


25 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय ज़ोया जी
    नमस्कार !
    दोपहर से शाम हो आई वो अभी भी वहीँ हैपर अब चेहरा दोपहर से बिलकुल अलग है वेदना पसरी है और आँखों में सैलाब ताश के पत्तों का मकान ज्यूँ गिरेयूँ ढही बैठी है !वो
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  2. एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

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  3. "चेहरा दोपहर से बिलकुल अलग है
    वेदना पसरी है और आँखों में सैलाब
    ताश के पत्तों का मकान ज्यूँ गिरे
    यूँ ढही बैठी है !
    वो अभी भी उस तरफ निहारे जा रही है !"

    मर्मस्पर्शी चित्र प्रस्तुत किया है आपने.

    सादर

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  4. एक घुटे-घुटे दर्द के साथ बहुत कुछ कहती एक खामोश सी कविता ...द्वन्द और अंतहीन प्रतीक्षा ने अंत तक बांधे रखा है...............

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  5. वेदना पसरी है और आँखों में सैलाब
    ताश के पत्तों का मकान ज्यूँ गिरे
    यूँ ढही बैठी है !nihshabd karte bhaw

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  6. बहुत मार्मिक स्थिति ...सुन्दर रचना ..एहसासों से भरी हुई

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  7. oooooooooooooooooooo
    aap sab ka tah e dil se shurkiyaaaaaaaaaaa
    itnee achhee aur pyaare shabdon ke liye
    thanxx a lott to aal of u
    take care

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  8. शानदार लिखा है आपने. बधाई
    मेरे ब्लॉग पर आयें और अपनी कीमती राय देकर उत्साह बढ़ाएं
    समझो : अल्लाह वालो, राम वालो

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  9. कविता मे एक कहानी कह दी……………दिल मे उतर गयी।

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  12. jyada nahin ,bas itana kahunga ,saumya
    saral kavy pravahsukhad laga .aabhar ji

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  13. ज़बरदस्त भावों से लबरेज़.

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  14. bahut khoob joya ji...ye to bilkul sahi kaha aapne..kafi similiarities hai hum dono ke blog me...but sabhi k blog apne aap me freshness liye hote hai....joya ji...aur aapka bhi...kyoki usme se ek vyaktitva(personality) jhalakta hai...thanks joya ji

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  15. चेहरा दोपहर से बिलकुल अलग है
    वेदना पसरी है और आँखों में सैलाब
    ताश के पत्तों का मकान ज्यूँ गिरे
    यूँ ढही बैठी है !

    मर्मस्पर्शी भावपूर्ण कविता....
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  16. बेजोड़ ...दर्द से भरे ...पसरे ....खामोश ...एहसास ...
    छोड़ गए हैं अजीब सी खामोशी .......!!!!
    बहुत सुंदर .

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  17. aadarniy joya ji...namaste...bahut acchhi lagi aapki kabita...kya kahe wo ab bhi wahi ruka hua tha....badi bedna intzaar..umeed leke sayad wo picchhe mudta rha tha..magr afshosh ...bahut sundar rachna....

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  18. जोया जी,

    बहुत खुबसूरत ......एक शानदार गाना याद आ गया है इस पोस्ट पर......"मैं ये सोच के उस के दर से उठा था के वो रोक लेगी" ........बहुत खूब|

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  19. बहुत कुछ कविता का असर और कुछ-कुछ लगे फोटो की तासीर कि कविता ने ऐसे जोड़ लिया कि मैं समझ ही नहीं पाया कि मैं कविता पढ़ रहा हूँ.

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  20. दोपहर से शाम हो आई
    वो अभी भी वहीँ है
    पर अब
    चेहरा दोपहर से बिलकुल अलग है
    वेदना पसरी है और आँखों में सैलाब
    ताश के पत्तों का मकान ज्यूँ गिरे
    यूँ ढही बैठी है !

    शानदार रचना....

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  21. खुबसुरत रचना और उतनी ही बेहतरीन प्रस्तुति। दिल के भावों को बेहद खुबसुरती से उकेरा है आपने।

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  22. दोपहर से शाम हो आई
    वो अभी भी वहीँ है
    पर अब
    चेहरा दोपहर से बिलकुल अलग है.


    शब्दों की गहराई, जो बहकर सामने आई,

    बहुत सुन्दर रचना.
    धन्यवाद.

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