बुधवार, जुलाई 13, 2011

क्या तुम मुझे छोड़ के जा रही हो "जोया"***




"जोया" !       यही नाम है  न तुम्हारा 
मानी के अन्वेषिका ,खोज में लीन
खुद के मानी खोजते खोजते युहीं 
तुम से आ मिली थी मैं इक दिन 
हूब हू मुझसी दिखती ..मू बा मू
बस कुछ अलग था तो वो था
 तुम्हारे हाथ में मोरपंखीं कलम होना 

मेरा हर ख्याल ....ख्वाब ...एहसास 
तुम ऐसे आहंग से उकेरती की 
मेरी हर बिखरावट सिमट आती 
और मैं सिमटती गयी खुद से
तुम तक के दायरे में
गुजरते हर माह ओ साल  के साथ

पर हम में कुछ और भी था 
जो अलग था...और वो था ......
बदलाव

तुम जोया थी जोया ही रही ...
और मैं 
बदलती गयी हर नये किरदार के साथ

बदलावों और जिंदगी के पड़ावों में 
हमारा दायरा बिखरने लगा,मिटने लगा

और अब .......यूँ लगने लगा है
की .........शायद अब थक गयी हूँ मैं  
हमारी उसी खोज की तलाश में भटकते-2  
पर तुम अभी भी हो  उसी तजस्सुस में
और दूर चले जा रही हो मुझसे

कोई एहतेसाब नही कर  रही हूँ तुमसे
ना किसी जवाब की ही दरकार है मुझे

बस......फिर भी ........युहीं पूछ रही हूँ

क्या तुम मुझे छोड़ के जा रही हो ..."जोया" !

   :-"जोया"





"जोया" -  Life
मू बा मू - Exectly
 तजस्सुस - search,खोज 
 एहतेसाब - question a behaviour, पुछ्ताश

14 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

बहुत खुबसूरत रचना...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कोई एहतेसाब नही कर रही हूँ तुमसे
ना किसी जवाब की ही दरकार है मुझे
phir bhi , yun hi ... shayad kuch kaho

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

कई बार गिरा हूँ मैं भी
औरों की तरह,
हर बार उठा हूँ
बिना किसी सहारे के.
उठना विवशता है
मरना नहीं .....
मुझे पता है
रुकना मृत्यु है
जीवन के लिए चलना ही होगा.
अन्वेषण तो एक मार्ग है
आगे ....और आगे बढ़ने का.
जोया कभी छोड़कर नहीं जायेगी
उसका रुकना
अंत है कामनाओं का
और बिना कामना के
जीवन का कोई अर्थ नहीं
यह पता है उसे.

बेनामी ने कहा…

बहुत खुबसूरत अहसासों से सजी पोस्ट.....शानदार|

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

और मैं
बदलती गयी हर नये किरदार के साथ

बदलावों और जिंदगी के पड़ावों में
हमारा दायरा बिखरने लगा,मिटने लगा

बहुत बढ़िया...

संजय भास्‍कर ने कहा…

अहसासों से सजी .....शानदार पोस्ट

रविकर ने कहा…

चलते रहना होगा ||
अच्छी प्रस्तुति ||
बधाई ||

Minakshi Pant ने कहा…

किसी के लौट आने के इंतज़ार में भावपूर्ण सुन्दर रचना |

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

कोमल और हृदय स्पर्शी रचना ,सुंदर आत्म-मंथन.

रजनीश तिवारी ने कहा…

देखते रहते हैं खुद को अपने से दूर जाते हुए ...बहुत सुंदर कविता

vidhya ने कहा…

कोमल और हृदय स्पर्शी रचना ,सुंदर आत्म-मंथन.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut komal srijan.

Pinkey ने कहा…

कैसे अलग हो सकती है ज़ोया तुम से?तुम 'वो' बन चुकी हो.जब सब पहचानने लगे किसी नए नाम से ...पुराना नाम अपनी पहचान खो देता है. कहीं नही जायेगी जोय....वो तुम में साँसे लेती है....तुममे जीती है.बहुत सवाल करके उसे परेशां मत करो जीने दो उसे तुम में सुकून से. वो बेकल रही तो कल तुम भी न पाओगी.
कठिन उर्दू शब्दों के अर्थ भी दे दिया करो जिससे समझने में आसानी रहे.गहराई है तुम्हारी रचनाओं में और.....मुझे डूबना पसंद है.
क्या करू?ऐसिच हूँ मैं तो ज़ोया ! प्यार
तुम्हारी इंदु पुरी

Pinkey ने कहा…

देखो तो कठीन शब्दों के अर्थ दिए है तुमने फिर भी...............जाने कहाँ थी मैं कि .....देख ही न पाई.सॉरी.
ज़ोया यानी रिसर्चर ...अन्वेषक ..........तभी खोजती रहती हो खुद को हरदम और........मैं भी.तुम में अपने अक्स को अपने वजूद को खोजती हूँ जैसे कोई माँ अपने बच्चे में ढूंढती है अपने नैन नक्श.
हा हा हा