मैंने कई बार उठायी है कलम कुछ नया लिखने के लिए
पर आँखों और बदन का बोझिलपन सुस्त बना देता है
पूरा दिन दुनिया उठाने के बाद कलम उठाई नही जाती!
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काश के अपनी जिंदगी भी कागज़ -पेंसिल की तरहा होती
जो गलत लिखा गया , मिटोया और फिर से लिख लिया
यहाँ तो गलतियाँ भी हज़ार और ऊपर से इरेज़र भी नही!
14 टिप्पणियां:
अन्वेषिका जी ! कुछ गलतियाँ तो सुधारी जा सकती हैं पर कुछ गलतियाँ यह मौक़ा एक बार भी नहीं देतीं ......ज़िंदगी ऐसी ही है .......कभी नीम-नीम कभी शहद-शहद ..
बहरहाल कागज़ पेन्सिल और इरेज़र वाली पंक्ति अच्छी लगी ......
किन्तु तुम अभी तक जाग रही हो ? पता है समय कितना हो गया है ? ...चलो सो जाकर ....
बहुत सही कहा आपने...
वाह
जिदगी
कागज़
लिखना
और इरेजर ||
बधाई ||
बेहतरीन.
सादर
सुन्दर
बहुत सही
सुन्दर
बहुत सही
आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
गलतियों से ही अनुभव जमा होते हैं ..
इसीलिए हर ज़िन्दगी की अलग कहानी है...नहीं तो सब एक सी लिख लेते...नक़ल करके...
पूरा दिन दुनिया उठाने के बाद कलम उठाई नही जाती!
बहुत खूब......शानदार|
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 21 - 07- 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- उसकी आँखों में झिल मिल तारे -
जिंदगी अगर सच में कागज़ पेंसिल की तरह होती तो फिर बात ही क्या होती...फ़िक्र करने को फिर कुछ बचता कहाँ :)
dono hi bahut achchi triveniyan hain venus ji.
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