शुक्रवार, मार्च 23, 2012

ज़ोया का चाँद




इक शाम थी 
जिसे चाँद की तलाश थी 
पर चाँद था के 
रात के आँचल में छुपा हुआ 
मद्दतों तरस की उमस में 
शाम झुलसती रही 
मुद्दतों प्यास की नदी में 
शाम तैरती रही 

और फिर इक दिन 

इक सर्द सी दोपहर में 
चाँद रात के आँचल से निकल 
शाम की गोद में आ गया 

वो जो इक तरस थी
वो जो इक प्यास थी 
अपनी नन्ही सी आँखों के 
नर्म उजालों  से बुझा गया 
वो जो तजस्सुम थी ज़ोया की
अपनी आमद से मिटा गया  !
                                                                                                                                     
Dedicated to my jaan ...my lovable Son "Aadhvan"(Monu)
                                                                                                                                                
                                                                                     ज़ोया


12 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दू नववर्ष पर दुहिता का पुनरावतरण ...चिरंजीव आधवन के उजास के साथ ...मंगलमय हो।
    यह प्रकाश प्रखर हो
    जीवन में और भी उजास हो
    अब शाम नहीं भोर ही भोर हो
    प्रथम, प्रिय नापित्र का
    कल्याण ही कल्याण हो ....

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही खूबसूरत!

    Lots of Love to Dear Monu !

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. कल 26/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. खूबसूरत नज़्म ...जॉय का चाँद बस मुस्कुराता रहे ...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत -बहुत सुन्दर रचना...
    सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.....

    जवाब देंहटाएं
  6. कविता या नज़्म की यही खूबसूरत होती है....कितने अर्थ समाये रहते हैं उसमें .....कितने अलग नज़रिए ....जब तक यह नहीं पढ़ा था की 'बेटे मोनू' को समर्पित रचना है ...तब तक उसका अर्थ बिलकुल मुख्तलिफ था .....और यह पढ़ते ही ..मायने बिलकुल बदल गए ...बहुत खुबसूरत नज़्म है ज़ोया जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. ज़ोया का चाँद बहुत क्यूट एंड स्वीट सा है!! :)

    जवाब देंहटाएं