इक शाम थी
जिसे चाँद की तलाश थी
पर चाँद था के
रात के आँचल में छुपा हुआ
मद्दतों तरस की उमस में
शाम झुलसती रही
मुद्दतों प्यास की नदी में
शाम तैरती रही
और फिर इक दिन
इक सर्द सी दोपहर में
चाँद रात के आँचल से निकल
शाम की गोद में आ गया
वो जो इक तरस थी
वो जो इक प्यास थी
अपनी नन्ही सी आँखों के
नर्म उजालों से बुझा गया
वो जो तजस्सुम थी ज़ोया की
अपनी आमद से मिटा गया !
Dedicated to my jaan ...my lovable Son "Aadhvan"(Monu)
ज़ोया
12 टिप्पणियां:
हिन्दू नववर्ष पर दुहिता का पुनरावतरण ...चिरंजीव आधवन के उजास के साथ ...मंगलमय हो।
यह प्रकाश प्रखर हो
जीवन में और भी उजास हो
अब शाम नहीं भोर ही भोर हो
प्रथम, प्रिय नापित्र का
कल्याण ही कल्याण हो ....
खूबसूरत
बहुत ही खूबसूरत!
Lots of Love to Dear Monu !
सादर
कल 26/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत उम्दा नज़्म...
सादर.
खूबसूरत नज़्म ...जॉय का चाँद बस मुस्कुराता रहे ...
just beautiful..........
anu
बहुत -बहुत सुन्दर रचना...
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.....
उम्दा रचना ...
कविता या नज़्म की यही खूबसूरत होती है....कितने अर्थ समाये रहते हैं उसमें .....कितने अलग नज़रिए ....जब तक यह नहीं पढ़ा था की 'बेटे मोनू' को समर्पित रचना है ...तब तक उसका अर्थ बिलकुल मुख्तलिफ था .....और यह पढ़ते ही ..मायने बिलकुल बदल गए ...बहुत खुबसूरत नज़्म है ज़ोया जी !
my heartiest congratulations ... lots of love to monu .. :)
ज़ोया का चाँद बहुत क्यूट एंड स्वीट सा है!! :)
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