बहुत सही कहा सखी...कहा क्या है, जिया से जिया है..तभी तो कहाँ फूटता है...कितने औरों को आवाज़ सी मिल जाती है जो महसूस तो करते हैं और तजुर्बे भी पर कहने के हुनर का उन पे शायद करम नहीं होता...
यूं ही नहीं नाम तुम्हारा, ज़ोया है मेरी दोस्त ऐ अज़ीज़!
@ब्लॉगर संजय भास्कर @yashoda agrawa @Digamber Naswa @सु-मन (Suman Kapoor) aap sab ka tah e dil se bahut bahut dhanywaad............aap mere blog aur rchnaa taak aaye..sraahe....bahut bahut dhanywaad
रेत के ढूह वहाँ के वाशिंदों को अच्छे नहीं लगते । इधर से उधर सरकते रेतीले ढूहों से निज़ात पाने की तमन्ना में ताउम्र ग़ुजार देने वालों को भी आख़िरी वक़्त में वे ढूह ही सबसे ख़ूबसूरत लगते हैं । ... ज़िंदगी की ख़ूबसूरती उसकी उस तह में ही छिपी है जिससे हम बदसूरत कहते नहीं थकते ।
जोया का ब्लॉग की चौखट पे बने रहना ज़रूरी है । बीच-बीच में लम्बी ग़ैरहाज़िरी पनिशेबल हो सकती है ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 10 फ़रवरी 2016 को में शामिल किया गया है। http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
14 टिप्पणियां:
बहुत सही कहा सखी...कहा क्या है, जिया से जिया है..तभी तो कहाँ फूटता है...कितने औरों को आवाज़ सी मिल जाती है जो महसूस तो करते हैं और तजुर्बे भी पर कहने के हुनर का उन पे शायद करम नहीं होता...
यूं ही नहीं नाम तुम्हारा, ज़ोया है मेरी दोस्त ऐ अज़ीज़!
कोई होता है दिल मे तभी इतने एहसास उठते हैं... :)
बहुत खूब...सुन्दर रचना.
बहुत खूब ... ज़िन्दगी यूँ भी गुज़र जाती है ... खुद के ख्यालों में ...
वाह बहुत सुंदर
सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें
@reet....:)....u kno...i never in need of words to saay u something....u r my friend who alwys understand what my smile is saying....
thanx for being u...:)
@ravikar ji...bahut bahut dhanywaad
@ब्लॉगर संजय भास्कर
@yashoda agrawa
@Digamber Naswa
@सु-मन (Suman Kapoor)
aap sab ka tah e dil se bahut bahut dhanywaad............aap mere blog aur rchnaa taak aaye..sraahe....bahut bahut dhanywaad
@Madan Saxena
@Vaanbhatt
aap ka tah e dil se shukriya
बहुत बढ़िया ...
नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं!!
बेहतरीन।।
जय हिन्द
... जैसे कविता ने देख लिया हो ख़ुद को आइने में ।
रेत के ढूह वहाँ के वाशिंदों को अच्छे नहीं लगते । इधर से उधर सरकते रेतीले ढूहों से निज़ात पाने की तमन्ना में ताउम्र ग़ुजार देने वालों को भी आख़िरी वक़्त में वे ढूह ही सबसे ख़ूबसूरत लगते हैं । ... ज़िंदगी की ख़ूबसूरती उसकी उस तह में ही छिपी है जिससे हम बदसूरत कहते नहीं थकते ।
जोया का ब्लॉग की चौखट पे बने रहना ज़रूरी है । बीच-बीच में लम्बी ग़ैरहाज़िरी पनिशेबल हो सकती है ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 10 फ़रवरी 2016 को में शामिल किया गया है।
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
अच्छा लिखा , शब्दों का भावनात्मक चयन अच्छा है
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