सवाल ये नहीं कि
क्यों मंज़ूर कर लेती है
वो घुट घुट के जीना
फिर भी बंधे रहना
उसी बंधन से ताउम्र
जिससे बुझ रही है
आहिस्ता आहिस्ता
जीने की लौ
हर गुज़रते दिन
के साथ हर पल
क्यों मंज़ूर कर लेती है
वो घुट घुट के जीना
फिर भी बंधे रहना
उसी बंधन से ताउम्र
जिससे बुझ रही है
आहिस्ता आहिस्ता
जीने की लौ
हर गुज़रते दिन
के साथ हर पल
सवाल ये है कि
क्या उस रिश्ते से
रिहाई सुलझा पाएगी
उसकी ज़िंदगी की गिरहें
जो घेरें हैं उसे, उसके ज़ेहन
उसके जिस्म को
जवाब ये नही कि
खुल के जीने का हक़
उसको पा लेना चाहिए
तोड़ के वो बंधन जो
साँसों को तंग कर रहा है
हर गुज़रते दिन
के साथ हर पल
जवाब ये है कि
कीमत अदा करने का
जिम्मा उसी के हिस्से है
अपनी हर रिहाई का
'रिहाई'
इक रिश्ते से बंध के
आज़ाद ज़िंदा रहने की
या
बंधन से आज़ाद हो
हर मोड़ पे मरने की
इक रिश्ते से बंध के
आज़ाद ज़िंदा रहने की
या
बंधन से आज़ाद हो
हर मोड़ पे मरने की
ज़ोया****
आप की लिखी ये रचना....
जवाब देंहटाएं23/08/2015 को लिंक की जाएगी...
http://www.halchalwith5links.blogspot.com पर....
kuldeep ji....aapkaa bahut bahut aabhaar
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन me meri rchnaa ko link krne ke liy bahut bahut shurkiyaa
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद वापसी देख पा रहा हूँ । मन की ग़िरह को खोलती-बाँधती सी रचना ....गोया एक भकुआयी सी खड़ी बच्ची अपनी फ़्रॉक के एक कोने को उंगलियों से उमेठ रही हो ।
जवाब देंहटाएंK shiqwa tumhe GAM ko sehta dekhne me nhi
जवाब देंहटाएंGila h khud se k tumko GAM sehta dekhte h
डॉ. कौशलेन्द्रम
जवाब देंहटाएंbaba...:) :) aapse kyaa chuppaa he ..:)
ANAS QURESHI
जवाब देंहटाएंK shiqwa tumhe GAM ko sehta dekhne me nhi
Gila h khud se k tumko GAM sehta dekhte h
ufffffffffff....sahii h..:)
bahut bahut shukriya...yaahan tak aane ke liye...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार कल 27 मार्च 2016 को में शामिल किया गया है।
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएं