शुक्रवार, अगस्त 21, 2015

सवाल ये नहीं....




सवाल ये नहीं कि 
क्यों मंज़ूर कर लेती है
वो घुट घुट के जीना
फिर भी बंधे रहना
उसी बंधन से ताउम्र
जिससे बुझ रही है
आहिस्ता आहिस्ता
जीने की लौ
हर गुज़रते दिन
के  साथ हर पल 

सवाल ये है 
कि
क्या उस रिश्ते से
रिहाई सुलझा पाएगी
उसकी ज़िंदगी की गिरहें
जो घेरें हैं उसे, उसके ज़ेहन 
उसके जिस्म को 

जवाब ये नही कि
खुल के जीने का हक़
उसको पा लेना चाहिए
तोड़ के वो बंधन जो
साँसों को तंग कर रहा है
हर गुज़रते दिन
के  साथ हर पल 

जवाब ये है 
कि
कीमत अदा करने का 
जिम्मा उसी के हिस्से है 
पनी हर रिहाई का
'रिहाई'
इक रिश्ते से बंध के
आज़ाद ज़िंदा रहने की
या
बंधन से आज़ाद हो
हर मोड़ पे मरने 
की
ज़ोया**** 


9 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…

आप की लिखी ये रचना....
23/08/2015 को लिंक की जाएगी...
http://www.halchalwith5links.blogspot.com पर....


VenuS "ज़ोया" ने कहा…

kuldeep ji....aapkaa bahut bahut aabhaar

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन me meri rchnaa ko link krne ke liy bahut bahut shurkiyaa

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

बहुत दिन बाद वापसी देख पा रहा हूँ । मन की ग़िरह को खोलती-बाँधती सी रचना ....गोया एक भकुआयी सी खड़ी बच्ची अपनी फ़्रॉक के एक कोने को उंगलियों से उमेठ रही हो ।

anas qureshi ने कहा…

K shiqwa tumhe GAM ko sehta dekhne me nhi
Gila h khud se k tumko GAM sehta dekhte h

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

डॉ. कौशलेन्द्रम
baba...:) :) aapse kyaa chuppaa he ..:)

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

ANAS QURESHI

K shiqwa tumhe GAM ko sehta dekhne me nhi
Gila h khud se k tumko GAM sehta dekhte h

ufffffffffff....sahii h..:)

bahut bahut shukriya...yaahan tak aane ke liye...

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार कल 27 मार्च 2016 को में शामिल किया गया है।
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहतरीन अभिवयक्ति.....