सुनो
ज़रा इक पल भर को
आराम तो दो
सांस तो लो
इतनी तेज़ रफ्तार। उफ़्फ़
धुरी पे तेज़ तेज़
धुरी पे तेज़ तेज़
घूमते घूमते
कहीं यूँ न हो जाए
इस ज़मीन में कहीं
कोई सुरंग बन जाए
और मैं अपनी ही
मिटटी में खो जाऊं कहीं
सुनो ऐ ज़िंदगी
ज़रा इक पल भर को
आराम तो दो
सांस तो लो
पृथ्वी सी हूँ
पृथ्वी नही हूँ मैं
उसके पैरों तले तो
आसमान है
और मेरे पैरों तले
मेरे पैरों तले ज़मीन है.. मेरे घर की !
:-ज़ोया ****
Asteroids of thoughts
5 टिप्पणियां:
कविता ने मन को बाँध लिया .. क्या खूब लिखा है .. अंतिम पंक्तियों ने जादू कर दिया है ,,..
वाह बेहतरीन रचना
वाह ग़ज़ब सृजन,
भावों को सुंदर अभिव्यक्ति ।
वाह बेहतरीन।
dr.zafar ji
blog tak aane..rchnaa ko pdhne aur sraahne ke liye tah e dil se shukriyaa
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