शुक्रवार, अगस्त 23, 2019

हृदयी फूल पलाश का !


और फिर यूँ हुआ 
धीरे धीरे उतरने लगा 
उगते सूरज सा वो चटक लाल रंग ! 
जंगल की लाट सा था वो, और 
धीरे धीरे धूसर राख़ होने लगा !
ठंडी ऊसर राख !

देखते ही देखते वो राख 
शिराओं में पसरने लगी ,और 
दहकती नारंगी घुमावदार
चपल पंखुड़ियाँ मानो 
मरे सांप सी निस्तेजित हो गयीं  
प्राणरहित, रागरहित, बदरंग !

आखिर कब सह पाया है
स्नेही जीवंत किंशुक 
तुषार निठुर विराग का 
धीमे धीमे फिर बस युहीं 
क्षय होता गया 
हृदयी फूल पलाश का !

:-ज़ोया 





जंगल की लाट,किंशुक = पलाश के नाम 
धूसर= ग्रे color
ऊसर =बंजर ,Unproductive 
शिराओं= blood vessels  
तुषार=पाला,Blight 
क्षय= Decay  

pc @google images 

22 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचना ज़ोया...यूं ही लिखती रहेंं . हार्दिक शुभकामनाएं .

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  2. जय मां हाटेशवरी.......
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    25/08/2019 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में......
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  3. @Meena Bhardwaj ji

    aabhaar

    bas aap bhi yuhin utaah bdhaate rahen :)

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  4. @kuldeep thakur ji

    blog tak aane, rchnaa ko sraahne aur usko apne blog me shaamil krne ke liye bahut bahut aabhar

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  5. जोया जी बहुत गहरा चिंतन होता है आपकी रचनाओं में ।
    सहजता से प्रवाह लिए।
    अप्रतिम।

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  6. बहुत खूबसूरत लिखा है आपने सुंदर भाव सरस सृजन।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-08-2019) को "मेक इन इंडिया " (चर्चा अंक- 3438) पर भी होगी।


    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  8. yashoda Agrawal ji

    "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" me meri rchnaa ko sthaan dene ke liye bahut dhanywaad..

    yuhin utsaah bdhaate rahen

    जवाब देंहटाएं
  9. Sweta sinha ji

    blog tak aane..rchnaa dhane aur srahnaa ke liye tah e dil se shurkiyaa

    yuhin utsaah bdhaate rahen

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  10. Anita saini ji


    bahut aabhaar aapka


    aap sarikhe saathiyon ke utsaah bdhaane se bahut khushi milti he

    yuhin sath bnaaye rkhen

    meri rchna ko sath dene ke liye dhanywaad

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  11. बहुत ही अच्छा लिखा आपने .....

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  12. सच एक दिन सब मिट्टी हो जाना है
    जीवन की नश्वरता को बहुत अच्छे ढंग से बताया है आपने।
    बहुत अच्छी रचना

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  13. @ सदा ji

    blog tak aane aur sraahne ke liye bahut bahut shukriya

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  14. @kavita rawat ji

    blog tak aane aur rchnaa ko pdhne aur sraahne ke liye dhanywaad

    hmmm..par..rchnaa maine kisi aur nzriye se likhi he..hmm...


    magr aapka nzriyaa bahut achaa he..dhanywaad

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  15. गज़ब ... शब्दों का वाही जादू बरकरार है आपकी लेखनी में ...
    बहुत दिनों बाद आया ब्लॉग पर और कायल हो गया इस खूबसूरत नज़्म का ...

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  16. @दिगंबर नासवा ji

    ohhhhhh,,,yaad hun aapko ...::)

    हाँ बहुत ही दिनों बाद..... मेरा खुद बहुत समय बाद रेगुलर हो पाया हे यहां आना। .....
    कैसे हैं आप। ... बहुत बहुत शुर्किया आपका... पहले आपके सराहना भरे शब्द बहुत उत्साह बढ़ाये रखते थे
    हम जब इक रह से रोज़ निकलते हैं.. तो साथ में चलने वालों से इक रोज़ उनसे मिल के। .बात क्र के,चेहरे देख कर.. ...फिर जब बहुत दिनों बाद उस राह से फिर गुज़रों और जब वही चेहरे इक गहरी से ख़ुशी महसूस होती हे। ..आपका कमेंट पढ़ कर बिलकुल वैसी ही ख़ुशी महसूस हुई। ...

    बहुत धन्यवाद आपका

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  17. कितनी कशिश है इन शब्दों में..
    आपकी कविताओं की तारीफ़ में कुछ कहना तो अब ऐसा लगता है जैसे सूरज को दिया दिखाना

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  18. @संजय भास्‍कर ji

    aree aree..itnii bdi baat naa kahiye....

    mujhe apnaa to maalum he....zameen ke paas hi rehati hun hmeshaa...pr kahin meri kavitaa naa saatwen aasmaa me pahunch jaaye

    itne snehi shbdon ke liye ..bahut aabhar aapkaa


    yuhin sath bnaaye rkhen

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  19. Kabhi kabhi kisi apne ki khamoshi dil tod deti hai.... Kabhi kabhi apno ke liya apna dil tod ke khamosh hona padta hai....

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